महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 90 श्लोक 17-38

नवतितम (90) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 17-38 का हिन्दी अनुवाद
  • 'श्रीकृष्ण! जो लज्जाशील, सत्य को धारण करने वाले, जितेंद्रिय तथा सब प्राणियों पर दया करने वाले हैं, जो काम, राग एवं द्वेष को वश में करके सत्पुरुषों के मार्ग का अनुसरण करते हैं, जो अम्बरीष, मान्धाता, ययाति, नहुष, भरत, दिलीप एवं उशीनर पुत्र शिबि आदि प्राचीन राजर्षियों के सदाचार पालन रूप धारण करने में कठिन धर्म की धुरी को धारण करते हैं, जिनमें शील और सदाचार की संपत्ति भरी हुई है, जो धर्मज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ और सर्वगुणसंपन्न होने के कारण इस भूमंडल के ही नहीं, तीनों लोकों के भी राजा हो सकते हैं, जिनका मन सदा धर्म में ही लगा रहता है, जो धर्मशास्त्रज्ञान और सदाचार सभी दृष्टियों से समस्त कौरवों में सबसे श्रेष्ठ हैं; जिनकी अंगकांति शुद्ध जाम्बूनद सुवर्ण के समान गौर है, जो देखने में सभी को प्रिय लगते हैं; वे महाबाहु अजातशत्रु युधिष्ठिर इस समय कैसे हैं? (17-21)
  • 'मधुसूदन! जो पांडुनंदन महाबली भीम दस हजार हाथियों के समान शक्तिशाली है, जिसका वेग वायु के समान है, जो असहिष्णु होते हुए भी अपने भाई को सदा ही प्रिय है और भाइयों का प्रिय करने में ही लगा रहता है, जिसने भाई-बंधुओं सहित कीचक का विनाश किया है, जिसे शूरवीर के हाथ से क्रोधवश नामक राक्षसों का, हिडिंबासुर तथा बक का भी संहार हुआ है, जो पराक्रम में इन्द्र, बल में वायुदेव तथा क्रोध में महेश्वर के समान है, जो प्रहार करने वाले योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ एवं भयंकर है, शत्रुओं को संताप देने वाला जो पांडुपुत्र भीम अपने भीतर क्रोध, बल और अमर्ष को रखते हुए भी मन को काबू में रखकर सदा भाई की आज्ञा के अधीन रहता है, जो स्वभावत: अमर्षशील है, जिसमें तेज की राशि संचित है, जो महात्मा, सर्वश्रेष्ठ, अमित तेजस्वी तथा देखने में भी भयंकर है, वृष्णिनंदन जनार्दन! उस मेरे द्वितीय पुत्र भीमसेन का समाचार बताओ। इस समय परिघ के समान सुदृढ़ भुजाओं वाला मेरा मंझला पुत्र पांडुकुमार भीमसेन कैसे है? (22-27)
  • 'श्रीकृष्ण! जो अर्जुन दो भुजाओं से युक्त होकर भी सदा प्राचीनकाल के सहस्र भुजाधारी कार्तवीर्य अर्जुन के साथ स्पर्धा रखता है; केशव! जो एक ही वेग से पाँच सौ बाण चलाता है, जो पांडव अर्जुन धनुर्विद्या में राजा कार्तवीर्य के समान ही समझा जाता है, जिसका तेज सूर्य के समान है, जो इंद्रियसंयम में महर्षियों के, क्षमा में पृथ्वी के और पराक्रम में देवराज इन्द्र के समान है; मधुसूदन! कौरवों का यह विशाल साम्राज्य, जो सम्पूर्ण राजाओं में प्रख्यात एवं प्रकाशित हो रहा है, जिसे अर्जुन ने ही अपने पराक्रम से बढ़ाया है; समस्त पांडव जिसके बाहुबल का भरोसा रखते हैं, जो सम्पूर्ण रथियों में श्रेष्ठ तथा सत्यपराक्रमी है, संग्राम में जिसके सम्मुख जाकर कोई जीवित नहीं लौटता है, अच्युत! जो सम्पूर्ण भूतों को जीतने में समर्थ, विजयशील एवं अजेय है तथा जैसे देवताओं के आश्रय इन्द्र हैं, उसी प्रकार जो समस्त पांडवों का अवलंब है, वह तुम्हारा भाई और मित्र अर्जुन इस समय कैसे है? (28-34)
  • 'मधुसूदन श्रीकृष्ण! जो समस्त प्राणियों के प्रति दयालु, लज्जाशील, महान अस्त्रवेटा, कोमल, सुकुमार, धार्मिक तथा मुझे विशेष प्रिय है; जो महाधनुर्धर शूरवीर सहदेव रणभूमि में शोभा पाने वाला, सभी भाइयों का सेवक, धर्म और अर्थ के विवेचन में कुशल तथा युवावस्था से युक्त है; कलयांकारी आचार वाले जिस महात्मा सहदेव के आचार-व्यवहार की सभी भाई प्रशंसा करते हैं, जो बड़े भाइयों के प्रति अनुरक्त, युद्धों के नेता और मेरी सेवा में तत्पर रहने वाला है; उस माद्रीकुमार वीर सहदेव का समाचार मुझे बताओ। (35-38)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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