द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-26 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर! मैं जानता हूँ, वह वहाँ से कभी लौटकर इस लोक में नहीं आता। जो मनुष्य देव मन्दिर में, ब्राह्मण के घर में, गोशाला में और चौराहे पर दीपक जलाता है, उसके पुण्य फल को सुनो। वह सुवर्णमय विमान पर बैठकर सम्पूर्ण दिशाओं को देदीप्यमान करता हुआ सूर्यलोक का जाता है, उस समय श्रेष्ठ देवता उसकी सेवा में उपस्थित रहते हैं। वह महातपस्वी पुरुष करोड़ों वर्षों तक सूर्यलोक में यथेष्ट विहार करने के पश्चात मर्त्यलोक में आकर वेद वेदांगों में पारंगत ब्राह्मण होता है। जो मनुष्य ब्राह्मण को करका (कमण्डलु), कर्णिका (गिलास) अथवा महान जलपात्र दान करता है, उसका पुण्यफल सुनो। जनेश्वर! पंचगव्य पीने वाले मनुष्य के लिये जो फल बताया गया है, उस फल को वह जलपात्र दान करने वाला मनुष्य पाता है। वह सदा तृप्त रहता है। उसे सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थ सुलभ होते हैं तथा उसकी इन्द्रियां और मन सदा प्रसन्न रहते हैं। इतना ही नहीं, वह हंस और सारसों से जुते हुए सुन्दर विमान पर बैठकर दिव्य गन्धर्वों से सेवित वरुण लोक में जाता है। जो गर्मी के तीन महीनों में जीवों के जीवनभूत जल का दान करता है, उसके पुण्य का फल सुनो। वह पूर्ण चन्द्रमा के समान प्रकाशमान सुन्दर विमान पर आरूढ़ होकर अप्सरागणों से सेवित हुआ इन्द्र भवन की यात्रा करता है। सिर में लगाने के लिये तेल-दान करने से मनुष्य तेजस्वी, दर्शनीय, सुन्दर, रूपवान, शूरवीर और पण्डित ब्राह्मण होता है। वस्त्र-दान करने वाला पुरुष भी तेजस्वी, दर्शनीय, सुन्दर, श्रीसम्पन्न और सदा स्त्रियों के लिये मनोरम होता है। जो उत्तम पुरुष जूता और छाता दान करता है, वह महान तेज से सम्पन्न हो सोने के बने हुए सुन्दर रथ पर बैठकर अप्सरागणों से सेवित हुआ इन्द्रलोक में जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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