द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-10 का हिन्दी अनुवाद
बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि क्षत्रिय, सांप और विद्वान ब्राह्मण यदि कमज़ोर हों तो भी कभी उनका अपमान न करें। क्योंकि वे तीनों अपमानित होने पर मनुष्य को भस्म कर डालते हैं। इसलिये बुद्धिमान पुरुष को प्रयत्नपूर्वक उनके अपमान से बचना चाहिये। जिस प्रकार सभी अवस्थाओं में अग्नि महान देवता हैं, उसी प्रकार सभी अवस्थाओं में ब्राह्मण महान देवता हैं। अंगहीन, काने, कुबड़े और बौने- इन सब ब्राह्मणों को देवकार्य में वेद के पारंगत विद्वान ब्राह्मणों के साथ नियुक्त करना चाहिये। उन पर क्रोध न करे, न उनका अनिष्ट ही करे; क्योंकि ब्राह्मण क्रोधरूपी शस्त्र से ही प्रहार करते हैं, वे शस्त्र हाथ में रखने वाले नहीं हैं। जैसे इन्द्र असुरों का वज्र से नाश करते हैं; क्योंकि ब्राह्मण जाति मात्र से ही महान देवभाव को प्राप्त हो जाता है। कुन्तीनन्दन! सारे प्राणियों के धर्मरूपी खजाने की रक्षा करने के लिये साधारण ब्राह्मण भी समर्थ हैं, फिर जो नित्य संध्योपासन करते हैं, उनके विषय में तो कहना ही क्या है? जिसके मुख से स्वर्गवासी देवगण हविष्य का और पितर कव्य का भक्षण करते हैं, उससे बढ़कर कौन प्राणी हो सकता है? ब्राह्मण जन्म से ही धर्म की सनातन मूर्ति है। वह धर्म के लिये ही उत्पन्न हुआ है और वह ब्रह्मभाव को प्राप्त होने में समर्थ है ब्राह्मण तो अपना ही खाता, अपना ही पहनता और अपना ही देता है। दूसरे मनुष्य ब्राह्मण की दया से ही भोजन पाते हैं। अत: ब्राह्मणों का कभी अपमान नहीं करना चाहिये; क्योंकि वे सदा ही मुझमें भक्ति रखने वाले होते हैं। जो ब्राह्मण बृहदारण्यक- उपनिषद में वर्णित मेरे गूढ़ और निष्फल स्वरूप का ज्ञान रखते हैं, उनका यत्नपूर्वक पूजन करना। पाण्डुनन्दन! घर पर या विदेश में, दिन में या रात में मेरे भक्त ब्राह्मणों की निरन्तर श्रद्धा के साथ पूजा करते रहना चाहिये ब्राह्मण के समान कोई देवता नहीं है, ब्राह्मण के समान कोई गुरु नहीं है, ब्राह्मण से बढ़कर बन्धु नहीं है और ब्राह्मण से बढ़कर कोई खजाना नहीं है। कोई तीर्थ और पुण्य भी ब्राह्मण से श्रेष्ठ नहीं है। ब्राह्मण से बढ़कर पवित्र कोई नहीं है और ब्राह्मण से बढ़कर पवित्र करने वाला कोई नहीं है। ब्राह्मण से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं और ब्राह्मण से उत्तम कोई गति नहीं है। पाप कर्म के कारण नरक में गिरते हुए मनुष्य का एक सुपात्र ब्राह्मण भी उद्धार कर सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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