एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 69-74 का हिन्दी अनुवाद
538. महावराहः- हिरण्याक्ष का वध करने के लिये महावराहरूप धारण करने वाले, 539. गोविन्दः- नष्ट हुई पृथ्वी को पुनः प्राप्त कर लेने वाले, 540. सुषेणः- पार्षदों के समुदायरूप सुन्दर सेना से सुसज्जित, 541. कनकागंदी-सुवर्ण का बाजूबंद धारण करने वाले, 542. गुह्यः- हृदयाकाश में छिपे रहने वाले, 543. गभीरः- अतिशय गम्भीर स्वभाव वाले, 544. गहनः- जिनके स्वरूप में प्रविष्ट होना अत्यन्त कठिन हो-ऐसे, 545. गुप्तः- वाणी और मन से जानने में न आने वाले, 546. चक्रगदाधरः- भक्तों की रक्षा करने के लिये चक्र और गदा आदि दिव्य आयुधों को धारण करने वाले, 547. वेधाः- सब कुछ विधान करने वाले, 548. स्वांगः- कार्य करने में स्वयं ही सहकारी, 549. अजितः- किसी के द्वारा न जीते जाने वाले, 550. कृष्णः- श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण, 551. दृढः- अपने स्वरूप और सामर्थ्य से कभी भी च्युत न होने वाले, 552. संकर्षणोऽच्युतः- प्रलयकाल में एक साथ सबका संहार करने वाले और जिनका कभी किसी भी कारण से पतन न हो सके- ऐसे अविनाशी, 553. वरुणः- जल के स्वामी वरुण देवता, 554. वारुणः- वरुण के पुत्र वशिष्ठस्वरूप, 555. वृक्षः- अश्वत्थवृक्षरूप, 556. पुष्कराक्षः- कमल के समान नेत्र वाले, 557. महामनाः- संकल्प मात्र से उत्पत्ति, पालन और संहार आदि समस्त लीला करने की शक्ति वाले। 558. भगवान- उत्पत्ति और प्रलय, आना और जाना तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले एवं सर्वैश्वर्यादि छहों भगों से युक्त, 559. भगहा- अपने भक्तों का प्रेम बढ़ाने के लिये उनके ऐश्वर्य का हरण करने वाले, 560. आनन्दी-परम सुखस्वरूप, 561. वनमाली- वैजयन्ती वनमाला धारण करने वाले, 562. हलायुधः- हलरूप शस्त्र को धारण करने वाले बलभद्रस्वरूप, 563. आदित्यः- अदितिपुत्र वामन भगवान, 564. ज्योतिरादित्यः- सूर्यमण्डल में विराजमान ज्योतिःस्वरूप, 565. सहिष्णुः- समस्त द्वन्द्वों को सहन करने में समर्थ, 566. गतिसत्तमः- सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप, 567. सुधन्वा- अतिशय सुन्दर शारंग धनुष धारण करने वाले, 568. खण्डपरशुः- शत्रुओं का खण्डन करने वाले फरसे को धारण करने वाले परशुराम स्वरूप, 569. दारुणः- सन्मार्ग विरोधियों के लिये महान भयंकर, 570. द्रविणप्रदः- अर्थार्थी भक्तों को धन-सम्पत्ति प्रदान करने वाले, 571. दिविस्पृक्- स्वर्गलोक तक व्याप्त, 572. सर्वदृग व्यासः- सबके दृष्टा एवं वेद का विभाग करने वाले श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास स्वरूप, 573. वाचस्पतिरयोनिजः- विद्या के स्वामी तथा बिना योनि के स्वयं ही प्रकट होने वाले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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