पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-69 का हिन्दी अनुवाद
जो नाना प्रकार के फूलों से मेरे लिंग की पूजा करता है, उसे सहस्र धेनुदान का फल प्राप्त होता है। जो देशान्तर में जाकर शिवलिंग की पूजा करता है, उससे बढ़कर समस्त मनुष्यों में मेरा प्रिय करने वाला दूसरा कोई नहीं है। इस प्रकार भाँति-भाँति के द्रव्यों द्वारा जो शिवलिंग की पूजा करता है, वह मनुष्यों में मेरे समान है। वह फिर इस संसार में जन्म नहीं लेता है। अतः भक्त पुरुष अर्चनाओं, नमस्कारों, उपहारों और स्तोत्रों द्वारा प्रतिदिन आलस्य छोड़कर शिवलिंगों के रूप में मेरी पूजा करे। पलाश और बेल के पत्ते, राजवृक्ष के फूलों की मालाएँ तथा आक के पवित्र फूल मुझे विशेष प्रिय हैं। देवि! मुझमें मन लगाये रहने वाले मेरे भक्तों का दिया हुआ फल, फूल, साग अथवा जल भी मुझे विशेष प्रिय लगता है। मेरे संतुष्ट हो जाने पर लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है, इसलिये भक्तजन सदा मेरी ही पूजा किया करते हैं। मेरे भक्त कभी नष्ट नहीं होते। उनके सारे पाप दूर हो जाते हैं तथा मेरे भक्त तीनों लोकों में विशेष रूप से पूजनीय हैं। जो मनुष्य मुझसे या मेरे भक्तों से द्वेष करते हैं, वे सौ यज्ञों का अनुष्ठान कर लें तो भी घोर नरक में पड़ते हैं। देवि! इस प्रकार मैंने तुमसे महान पाशुपत योग की व्याख्या की है। मुझमें भक्ति रखने वाले मनुष्यों को प्रतिदिन इसका श्रवण करना चाहिये। जो श्रेष्ठ मानव मेरे इस धर्मनिश्चय का श्रवण अथवा पाठ करता है, वह इस लोक में धनधान्य और कीर्ति तथा परलोक में स्वर्ग पाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में उमा महेश्वर संवाद विषयक एक सौ पैंतालिसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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