महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-23

पंचसप्ततितम (75) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: पंचसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
छठे दिन के युद्ध का आरम्भ, पाण्डव तथा कौरव सेना का क्रमशः मकरव्यूह एवं क्रौञ्चव्यूह बनाकर युद्ध में प्रवृत्त होना


संजय कहते हैं- राजन्! रात को विश्राम करने के अनन्तर जब वह रात बीत गयी, तब कौरव और पाण्डव पुनः युद्ध के लिये साथ-साथ निकले। भारत! उस समय वहाँ आपके और पाण्डव पक्ष के सैनिकों में बड़ा कोलाहल मचा। कुछ लोग श्रेष्ठ रथों को जोत करे थे, कुछ लोग हाथियों को सुसज्जित करते थे, कहीं पैदल सैनिक और घोड़े कवच बाँधकर साज-बाज धारण कर तैयार किये जा रहे थे। शंखों और दुन्दुभियों की ध्वनि बड़े जोर-जोर से हो रही थी। इन सबका सम्मिलित शब्द सब ओर गूँज उठा था।

तदनन्तर राजा युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न से कहा- 'महाबाहो। तुम शत्रुनाशक मकरव्यूह की रचना करो। महाराज! कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर रथियों में श्रेष्ठ महारथी धृष्टद्युम्न ने अपने समस्त रथियों को मकरव्यूह बनाने के लिये आज्ञा दे दी। उसके मस्तक के स्थान पर राजा द्रुपद तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन खड़े हुए। महारथी नकुल और सहदेव नेत्रों के स्थान में स्थित हुए। महाराज! महाबली भीमसेन उसके मुख की जगह खड़े हुए। सुभद्राकुमार अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँच पुत्र, राक्षस घटोत्कच, सात्यकि और धर्मराज युधिष्ठिर- ये उस मकरव्यूह के ग्रीवाभाग में स्थित हुए। नरेश्वर! सेनापति विराट विशाल सेना से घिरकर धृष्टद्युम्न के साथ उस व्यूह के पृष्ठ भाग में खड़े हुए। पाँच भाई केकयराजकुमार उनके वामपार्श्व में खड़े थे। नरश्रेष्ठ धृष्टकेतु और पराक्रमी चेकितान-ये व्यूह के दाहिने भाग में स्थित होकर उसकी रक्षा करते थे। महाराज! उसके दोनों पैरों की जगह महारथी श्रीमान् कुन्तिभोज और विशाल सेना सहित शतानीक खड़े थे। सोमकों से घिरा हुआ महाधनुर्धर शिखण्डी और बलवान् इरावान- ये दोनों उस मकरव्यूह के पुच्छभाग में खड़े थे।

महाराज! इस प्रकार उस महान् मकरव्यूह की रचना करके पाण्डव कवच बाँधकर सूर्योदय के समय पुनः युद्ध के लिये तैयार हो गये। ऊँची-ऊँची ध्वजाओं, छत्रों तथा चमकीले और तीखे अस्त्र-शस्त्रों से युक्त हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिकों की चतुरगिंणी सेना के साथ पाण्डवों ने कौरवों पर शीघ्रतापूर्व आक्रमण किया। राजन्! तब आपके ताऊ देवव्रत ने पाण्डवों का वह व्यूह देखकर उसके मुकाबिले में अपनी सेना को महान् क्रौच्ञ व्यूह के रूप में संगठित किया। उसकी चोंच के स्थान में महाधनुर्धर द्रोणाचार्य सुशोभित हुए। नरेश्वर! अश्वत्थामा और कृपाचार्य नेत्रों के स्थान में खड़े हुए। काम्बोज और बाल्हिकदेश के उत्तम सैनिकों के साथ समस्त, धनुर्धरों में श्रेष्ठ नरप्रवर कृतवर्मा व्यूह के सिरोभाग में स्थित हुए।

आर्य! महाराज! राजा शूरसेन तथा आपका पुत्र दुर्योधन- ये दोनों बहुत से राजाओं के साथ क्रौञ्चव्यूह के ग्रीवाभाग में स्थित हुए। नरश्रेष्ठ! मद्र, सौवीर और केकय योद्धाओं के साथ विशाल सेना से घिरे हुए प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त उस व्यूह के वक्षःस्थल में स्थित हुए। प्रस्थलाधिपति (त्रिगर्तराज ) सुशर्मा कवच धारण करके अपनी सेना के साथ व्यूह के वाम-पक्ष का आश्रय लेकर खड़े थे। भारत! तुषार, यवन, शक और चूचुपदेश के सैनिक व्यूह के दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर स्थित हुए। मारिष! श्रुतायु, शतायु तथा सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा ये परस्पर एक दूसरे की रक्षा करते हुए व्यूह के जघनप्रदेश में स्थित हुए। महाराज! तत्पश्चात् सूर्योदय-काल में पाण्डवों ने कौरवों के साथ युद्ध के लिये उनकी सेना पर आक्रमण किया, फिर तो बड़ा भयंकर युद्ध प्रारम्भ हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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