महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-17

अशीति (80) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: अशीति अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
नकुल का निवेदन
  • नकुल बोले– माधव! धर्मज्ञ और उदार धर्मराज ने बहुत सी बातें कही हैं और आपने उन्हें सुना है। (1)
  • यदुकुलभूषण! राजा का मत जानकर भाई भीमसेन ने भी पहले संधि स्थापन की, फिर अपने बाहुबल की बात बताई है। (2)
  • वीर! इस प्रकार अर्जुन ने भी जो कुछ कहा है, वह भी आपने सुन ही लिया है। आपका जो अपना मत है, उसे भी आपने अनेक बार प्रकट किया है। (3)
  • परंतु पुरुषोत्तम! इन सब बातों को पीछे छोड़कर और विपक्षियों के मत को अच्छी तरह सुनकर आपको समय के अनुसार जो कर्तव्य उचित जान पड़े, वही कीजिएगा। (4)
  • शत्रुओं का दमन करने वाले केशव! भिन्न-भिन्न कारण उपस्थित होने पर मनुष्यों के विचार भी भिन्न-भिन्न प्रकार के हो जाते हैं; अत: मनुष्य को वही कार्य करना चाहिए, जो उसके योग्य और समयोचित हों। (5)
  • पुरुषश्रेष्ठ! किसी वस्तु के विषय में सोचा कुछ और जाता है और हो कुछ और जाता है। संसार के मनुष्य स्थिर विचार वाले नहीं होते हैं।(6)
  • श्रीकृष्ण! जब हम वन में निवास करते थे, उस समय हमारे विचार कुछ और ही थे, अज्ञातवास के समय वे बदलकर कुछ और हो गए और उस अवधि को पूर्ण करके जब हम सबके सामने प्रकट हुए हैं, तब से हम लोगों का विचार कुछ और हो गया है। (7)
  • वृष्णिनन्दन! वन में विचरते समय राज्य के विषय में हमारा वैसा आकर्षण नहीं था, जैसा इस समय है। (8)
  • वीर जनार्दन! हम लोग वनवास की अवधि पूरी करके आ गए हैं; यह सुनकर आपकी कृपा से ये सात अक्षौहिणी सेनाएँ यहाँ एकत्र हो गयी हैं।(9)
  • यहाँ जो पुरुषसिंह वीर उपस्थित हैं, इनके बल और पौरुष अचिंत्य हैं। रणभूमि में इन्हें अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देखकर किस पुरुष का हृदय भयभीत न हो उठेगा ?(10)
  • आप कौरवों के बीच में उससे पहले सांतवनापूर्ण बातें कहियेगा और अंत में युद्ध का भय भी दिखाइएगा, जिससे मूर्ख दुर्योधन के मन में व्यथा न हो। (11)
  • केशव! अपने शरीर में मांस और रक्त का बोझ बढ़ाने वाला कौन ऐसा मनुष्य है, जो युद्ध में युधिष्ठिर, भीमसेन, किसी से पराजित न होने वाले अर्जुन, सहदेव, बलराम, महापराक्रमी सात्यकि , पुत्रों सहित विराट , मंत्रियों सहित द्रुपद, धृष्टद्युम्न, पराक्रमी काशिराज, चेदिनरेश धृष्टकेतु तथा आपका और मेरा सम्मान कर सके?। (12-14)
  • महाबाहो! आप वहाँ केवल जाने मात्र से धर्मराज के अभीष्ट मनोरथ को सिद्ध कर देंगे; इसमें संशय नहीं है। (15)
  • निष्पाप श्रीकृष्ण! विदुर, भीष्म, द्रोणाचार्य तथा बाह्लिक– ये आपके बताने पर कल्याणकारी मार्ग को समझने में समर्थ हैं। (16)
  • ये लोग राजा धृतराष्ट्र तथा मंत्रियों सहित पापाचारी दुर्योधन को समझा-बुझाकर राह पर लाएँगे। (17)
  • जनार्दन! जहाँ विदुरजी किसी प्रयोजन को सुनें और आप उसका प्रतिपादन करें, वहाँ आप दोनों मिलकर किस बिगड़ते हुए कार्य को सिद्धि के मार्ग पर नहीं ला देंगे? (18)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में नकुल वाक्य विषयक असीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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