"महाभारत वन पर्व अध्याय 287 श्लोक 18-29" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 18-29 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 18-29 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
अब उसने अपना शरीर बहुत बड़ा बना लिया। उसके अनेक पैर, अनेक सिर और अनेक भुजाएँ हो गयीं।  यह देख लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर पर्वत समूह के समान विशाल शरीर वाले उस राक्षस को चीर डाला। जैसे महान् भयंकर बिजली के आघात से शाखाओं और पत्तों सहित वृक्ष दग्ध हो जाता है, उसी प्रकार लक्ष्मण के दिव्यास्त्र से आहत होकर महापराक्रमी कुम्भकर्ण रणभूमि में गिर पड़ा। वृत्रासुर के समान वेगशाली कुम्भकर्ण को प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर देख सब राक्षस भय के मारे भाग चले। अपने सैनिकों को इस प्रकार भागते देख दूषण के दोनों भाई- [[वज्रवेग]] और प्रमाथी ने किसी प्रकार उन्हें रोककर खड़ा किया और अत्यन्त कुपित हो सुमित्राकुमार लक्ष्मण पर धावा बोल दिया। क्रोध में भरे हुए वज्रवेग और प्रमाथी को अपनी ओर आते देख लक्ष्मण ने बड़े जोर का सिंहनाद किया और उन दोनों की गति को बाणों द्वारा रोक दिया।
 
  
युधिष्ठिर! फिर तो दूषण के भाइयों तथा बुद्धिमान लक्ष्मण में ऐसा भयंकर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खडत्रे कर देने वाला था। लक्ष्मण उन दोनों राक्षसों पर बाणों की बड़ी भारी वर्षाकर रहे थे और व दोनों वीर राक्षस भी अत्यन्त कुपित होकर लक्ष्मण पर बाणों की बौछार करते थे। इस प्रकार वज्रवेग और प्रमाथी और महाबाहु लक्ष्मण का वह भयंकर संग्राम दो घड़ी तक अबाध गति से चलता रहा। इसी बीच वायुनन्दन [[हनुमान]] ने पर्वत शिचार हाथ में लेकर वज्रवेग नामक राक्षस के ऊपर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये।  
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अब उसने अपना शरीर बहुत बड़ा बना लिया। उसके अनेक पैर, अनेक सिर और अनेक भुजाएँ हो गयीं। यह देख [[लक्ष्मण]] ने [[ब्रह्मास्त्र]] का प्रयोग कर पर्वत समूह के समान विशाल शरीर वाले उस राक्षस को चीर डाला। जैसे महान् भयंकर बिजली के आघात से शाखाओं और पत्तों सहित वृक्ष दग्ध हो जाता है, उसी प्रकार लक्ष्मण के दिव्यास्त्र से आहत होकर महापराक्रमी [[कुम्भकर्ण]] रणभूमि में गिर पड़ा। वृत्रासुर के समान वेगशाली कुम्भकर्ण को प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर देख सब राक्षस भय के मारे भाग चले। अपने सैनिकों को इस प्रकार भागते देख दूषण के दोनों भाई- [[वज्रवेग]] और प्रमाथी ने किसी प्रकार उन्हें रोककर खड़ा किया और अत्यन्त कुपित हो सुमित्राकुमार लक्ष्मण पर धावा बोल दिया। क्रोध में भरे हुए वज्रवेग और प्रमाथी को अपनी ओर आते देख लक्ष्मण ने बड़े जोर का सिंहनाद किया और उन दोनों की गति को बाणों द्वारा रोक दिया।
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[[युधिष्ठिर]]! फिर तो दूषण के भाइयों तथा बुद्धिमान लक्ष्मण में ऐसा भयंकर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। लक्ष्मण उन दोनों राक्षसों पर बाणों की बड़ी भारी वर्षाकर रहे थे और व दोनों वीर राक्षस भी अत्यन्त कुपित होकर लक्ष्मण पर बाणों की बौछार करते थे। इस प्रकार वज्रवेग और प्रमाथी और महाबाहु लक्ष्मण का वह भयंकर संग्राम दो घड़ी तक अबाध गति से चलता रहा। इसी बीच वायुनन्दन [[हनुमान]] ने पर्वत शिला हाथ में लेकर वज्रवेग नामक राक्षस के ऊपर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये।
  
महाबली नील नामक वानर ने एक विशाल चट्टान लेकर दूषण के दूसरे भाई प्रमाथी पर हमला किया और उसका कचूमर निकाल दिया। तदनन्तर श्रीराम और रावण की सेना में परस्पर आक्रमण पूर्वक भीषण संग्राम आरम्भ हो गया, जो कटु परिणाम का जनक था। वनवासी वानरों ने सैंकड़ों राक्षसों को तथा राक्षसों ने वानरों को घायल किया। उस युद्ध में अधिकांश राक्षस ही मारे जा रहे थे, वानर नहीं।
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महाबली [[नील]] नामक वानर ने एक विशाल चट्टान लेकर दूषण के दूसरे भाई प्रमाथी पर हमला किया और उसका कचूमर निकाल दिया। तदनन्तर [[राम|श्रीराम]] और [[रावण]] की सेना में परस्पर आक्रमणपूर्वक भीषण संग्राम आरम्भ हो गया, जो कटु परिणाम का जनक था। वनवासी वानरों ने सैंकड़ों राक्षसों को तथा राक्षसों ने वानरों को घायल किया। उस युद्ध में अधिकांश राक्षस ही मारे जा रहे थे, वानर नहीं।
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में कुम्भकर्ण आदि का वध विषयक दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
 
  
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12:12, 21 मार्च 2018 के समय का अवतरण

सप्तशीत्यधिकद्वशततम (287) अध्‍याय: वन पर्व (रामोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्तशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 18-29 का हिन्दी अनुवाद


अब उसने अपना शरीर बहुत बड़ा बना लिया। उसके अनेक पैर, अनेक सिर और अनेक भुजाएँ हो गयीं। यह देख लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर पर्वत समूह के समान विशाल शरीर वाले उस राक्षस को चीर डाला। जैसे महान् भयंकर बिजली के आघात से शाखाओं और पत्तों सहित वृक्ष दग्ध हो जाता है, उसी प्रकार लक्ष्मण के दिव्यास्त्र से आहत होकर महापराक्रमी कुम्भकर्ण रणभूमि में गिर पड़ा। वृत्रासुर के समान वेगशाली कुम्भकर्ण को प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर देख सब राक्षस भय के मारे भाग चले। अपने सैनिकों को इस प्रकार भागते देख दूषण के दोनों भाई- वज्रवेग और प्रमाथी ने किसी प्रकार उन्हें रोककर खड़ा किया और अत्यन्त कुपित हो सुमित्राकुमार लक्ष्मण पर धावा बोल दिया। क्रोध में भरे हुए वज्रवेग और प्रमाथी को अपनी ओर आते देख लक्ष्मण ने बड़े जोर का सिंहनाद किया और उन दोनों की गति को बाणों द्वारा रोक दिया।

युधिष्ठिर! फिर तो दूषण के भाइयों तथा बुद्धिमान लक्ष्मण में ऐसा भयंकर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। लक्ष्मण उन दोनों राक्षसों पर बाणों की बड़ी भारी वर्षाकर रहे थे और व दोनों वीर राक्षस भी अत्यन्त कुपित होकर लक्ष्मण पर बाणों की बौछार करते थे। इस प्रकार वज्रवेग और प्रमाथी और महाबाहु लक्ष्मण का वह भयंकर संग्राम दो घड़ी तक अबाध गति से चलता रहा। इसी बीच वायुनन्दन हनुमान ने पर्वत शिला हाथ में लेकर वज्रवेग नामक राक्षस के ऊपर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये।

महाबली नील नामक वानर ने एक विशाल चट्टान लेकर दूषण के दूसरे भाई प्रमाथी पर हमला किया और उसका कचूमर निकाल दिया। तदनन्तर श्रीराम और रावण की सेना में परस्पर आक्रमणपूर्वक भीषण संग्राम आरम्भ हो गया, जो कटु परिणाम का जनक था। वनवासी वानरों ने सैंकड़ों राक्षसों को तथा राक्षसों ने वानरों को घायल किया। उस युद्ध में अधिकांश राक्षस ही मारे जा रहे थे, वानर नहीं।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्व में कुम्भकर्ण आदि का वध विषयक दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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