महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 22-43

षोडश (16) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद

'उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, केयूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खड्ग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांसभक्षी जीव-जन्तु आनन्दमग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। वीर! प्रभो! इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन! मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूँ। मधुसूदन! इन पाञ्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचों भूतों का ही विनाश हो गया। उन वीरों को खून से भीगे हुए गरुड़ और गीध इधर-उधर खींच रहे हैं। सहस्रों गीध उनके पैर पकड़-पकड़ कर खा रहे हैं। इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्‍य होकर यहाँ पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं।

जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भाँति-भाँति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरु चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शय्याओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदड़ियां बारबार चिल्‍लाती हुई इधर-उधर फेंकती हैं। ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भाँति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। सुन्दर रूप और कान्ति वाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भाँति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन! बहुत से योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहाँ मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीदड़ खींचते और झटकते हैं। वृष्णिसिंह! प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दुख और शोक से अत्यन्त पीड़ित हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव! इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भाँति शोभा पा रहे हैं'।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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