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चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: सभा पर्व (अनुद्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: भाग 5 का हिन्दी अनुवाद
भरतकुलभूषण महाराज! यही हमारा सबसे महान् कार्य है। ये शकुनि मामा विद्यासहित पासे फेंकने की कला को अच्छी तरह जानते हैं। (हमारी विजय होने पर) हम लोग बहुत-से मित्रों का संग्रह करके बलशाली, दुर्धर्ष एवं विशाल सेना का पुरस्कार आदि के द्वारा सत्कार करते हुए इस राज्य पर अपनी जड़ जमा लेंगे। यदि वे तेरहवें वर्ष के अज्ञातवास की प्रतिज्ञा पूर्ण कर लेंगे तो हम उन्हें युद्ध में परास्त कर देंगे। शत्रुओं को संताप देने-वाले नरेश! आप हमारे इस प्रस्ताव को पसंद करें। धृतराष्ट्र ने कहा- बेटा! पाण्डव लोग दूर चले गये हों, तो भी तुम्हारी इच्छा हो, तो उन्हें तुरंत बुला लो। समस्त पाण्डव यहाँ आयें और इस नये दाँव पर फिर जूआ खेलें। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तब द्रोणाचार्य, सोमदत्त, बाह्लीक, कृपाचार्य, विदुर, अश्वत्थामा, पराक्रमी युयुत्सु, भूरिश्रवा, पितामह भीष्म तथा महारथी विकर्ण सब ने एक स्वर से इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा- ‘अब जूआ नहीं होना चाहिये, तभी सर्वत्र शान्ति बनी रह सकती है'। भावी अर्थ को देखने और समझने वाले सुहृद अपनी अनिच्छा प्रकट करते ही रहे गये; किंतु दुर्योधन आदि पुत्रों के प्रेम में धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को बुलाने का आदेश दे ही दिया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत अनुद्यूत पर्व में युधिष्ठिरप्रत्यानयन-विषयक चौंहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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