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महाभारत: सभा पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद
- वे धर्मज्ञ, पवित्रात्मा और निर्मल महर्षि राजा युधिष्ठिर को पवित्र कथाएँ सुनाया करते थे। इसी प्रकार क्षत्रियों में श्रेष्ठ नरेश भी वहाँ धर्मराज युधिष्ठिर की उपासना करते थे। (20)
- श्रीमान महामना धर्मात्मा मुञ्जकेतु, विवर्धन, संग्रामजित, दुर्मुख, पराक्रमी उग्रसेन, राजा कक्षसेन, अपराजित क्षेमक, कम्बोजराज कमठ और महाबली कम्पन, जो अकेले ही बल-पौरूषसम्पन्न, अस्त्र विद्या के ज्ञाता तथा अमित तेजस्वी यवनों को सदा उसी प्रकार कँपाते रहते थे, जैसे व्रजधारी इन्द्र ने कालकेय नामक असुरों को कम्पित किया था।[1] (21-23)
- इनके सिवा जटासुर, मद्रराज शल्य, राजा कुन्तिभोज, किरातराज पुलिन्द, अंगराज, वंगराज, पुण्ड्रक, पाण्ड्य, उड्रराज, आन्ध्रनरेश, अंग, बंग, सुमित्र, शत्रुसूदन शैव्य, किरातराज सुमना, यवननरेश, चाणूर, देवरात, भोज, भीमरथ, कलिंगराज श्रुतायुध, मगधदेशीय जयसेन, सुकर्मा, चेकितान, शत्रुसंहारक पुरु, केतुमान, वसुदान, विदेहराज कृतक्षण, सुधर्मा, अनिरुद्ध, महाबली श्रुतायु, दुर्धर्ष वीर अनूपराज, क्रमजित, सुदर्शन, पुत्रसहित शिशुपाल, करूषराज दन्तवक्त्र, वृष्णिवंशियों के देवस्वरूप दुर्धर्ष राजकुमार, आहुक, विपृथु, गद, सारण, अक्रूर, कृतवर्मा, शिनिपुत्र सत्यक, भीष्मक, आकृति, पराक्रमी द्युमत्सेन, महान धनुर्धर केकय राजकुमार, सोमक-पौत्र द्रुपद, केतुमान[2] तथा अस्त्र विद्या में निपुण महाबली वसुमान - ये तथा और भी बहुत से प्रधान क्षत्रिय उस सभा में कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर की सेवा में बैठते थे। (24-32)
- जो महाबली राजकुमार अर्जुन के पास रहकर कृष्ण मृगचर्म धारण किये धनुर्वेद की शिक्षा लेते थे[3] राजन! वृष्णिवंश को आनन्दित करने वाले राजकुमारों को वहीं शिक्षा मिली थी। (33-34)
- रुक्मिणी नन्दन प्रद्युम्न, जाम्बवती कुमार साम्ब, सत्यक पुत्र[4] युयुधान, सुधर्मा, अनिरुद्ध, नरश्रेष्ठ शैव्य- ये और दूसरे भी बहुत से राजा उस सभा में बैठते थे। पृथ्वीपते! अर्जुन के सखा तुम्बुरु गन्धर्व भी उस सभा में नित्य विराजमान होते थे। (35-36)
- मन्त्री सहित चित्रसेन आदि सत्ताईस गन्धर्व और अप्सराएँ सभा में बैठे हुए महात्मा युधिष्ठिर की उपासना करतीं थी। (37)
- गाने बजाने में कुशल, साम्य[5] और ताल[6] के विशेषज्ञ तथा प्रमाण, लय और स्थान की जानकारी के लिये विशेष परिश्रम किये हुए मनस्वी किन्नर तुम्बुरु की आज्ञा से वहाँ अन्य गन्धर्वों के साथ दिव्य तान छेड़ते हुए यथोचित रीति से गाते और पाण्डवों तथा महर्षियों का मनोरंजन करते हुए धर्मराज की उपासना करते थे। (38-39)
- जैसे देवता लोग दिव्य लोग की सभा में ब्रह्मा जी की उपासना करते हैं, उसी प्रकार कितने ही सत्य प्रतिज्ञ और उत्तम व्रत का पालन करने वाले महापुरुष उस सभा में बैठकर महाराज युधिष्ठिर की आराधना करते थे। (40)
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभा पर्व के अन्तर्गत सभाक्रिया पर्व में सभा प्रवेश नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ।
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