अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 27 का हिन्दी अनुवाद
कन्याएँ बोलीं- पुरुषोत्तम! देवर्षि नारद ने हमसे कह रखा था कि ‘देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये भगवान गोविन्द यहाँ पधारेंगे। एवं वे सपरिवार नरकासुर, निशम्भ, मुर, दानव हयग्रीव तथा पंचजन को मारकर अक्षय धन प्राप्त करेंगे। थोड़े ही दिनों में भगवान यहाँ पधारकर तुम सब लोगों का इस संकट से उद्धार करेंगे।’ ऐसा कहकर परम बुद्धिमान देवर्षि नारद यहाँ से चले गये। हम सदा आपका ही चिन्तन करती हुई घोर तपस्या में लग गयीं। हमारे मन में यह संकल्प उठता रता था कि कितना समय बीतने पर हमें महाबाहु माधव का दर्शन प्राप्त होगा। पुरुषोत्तम! यही संकल्प लेकर दानवों द्वारा सुरक्षित हो हम सदा तपस्या करती आ रही हैं। भगवन्! आप गन्धर्व विवाह की रीति से हमारे साथ विवाह करके हमारा प्रिय करें। हमारे पूर्वोक्त मनोरथ को जान कर भगवान वायु देव ने भी हम सबके प्रिय मनोरथ की सिद्धि के लिये कहा था कि ‘देवर्षि नारद जी ने जो कहा है, वह शीघ्र ही पूर्ण होगा’। भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! देवताओं तथा गन्धर्वों ने देखा, वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले भगवान श्रीकृष्ण उन परम सुन्दरी नारियों के समक्ष वैसे ही खड़े थे, जैसे नयी गायों के आगे साँड़ हो। भगवान के मुखचन्द्र को देखकर उन सबकी इन्द्रियाँ उल्लसित हो उठीं और हर्ष में भरकर महाबाहु श्रीकृष्ण से पुन: इस प्रकार बोलीं। कन्याओं ने कहा- बड़े हर्ष की बात है कि पूर्वकाल में वायुदेव ने तथा सम्पूर्ण भूतों के प्रति कृतज्ञता रखने वाले महर्षि नारद जी ने जो बात कही थी, वह सत्य हो गयी। उन्होंने कहा था कि ‘शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले सर्वव्यापी नारायण भगवान विष्णु भूमिपुत्र नरक को मारकर तुम लोगों के पति होंगे’। ऋषियों में प्रधान महात्मा नारद का वह वचन आज आपके दर्शन मात्र से सत्य होने जा रहा है, यह बड़े सौभाग्य की बात है। तभी तो आज हम आपके परम प्रिय चन्द्रतुल्य मुख का दर्शन कर रही हैं। आप परमात्मा के दर्शन मात्र से ही हम कृतार्थ हो गयीं। उन सब के हृदय में कामभाव का संचार हो गया था। उस समय यदुश्रेष्ठ श्रीकृष्ण ने उनसे कहा। श्रीभगवान बोले- विशाल नेत्रों वाली सुन्दरियों! जैसा तुम कहती हो, उसके अनुसार तुम्हारी सारी अभिलाषा पूर्ण हो जायगी। भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! सेवकों द्वारा उन सब रत्नों को तथा देवताओं एवं राजाओं आदि की कन्याओं को द्वारका भेज देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने उन उत्तम मणिपर्वत को शीघ्र ही गरुड़ी बाँह (पंख या पीठ) पर चढ़ा दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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