महाभारत सभा पर्व अध्याय 21 श्लोक 47-54

एकविंश (21) अध्‍याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 47-54 का हिन्दी अनुवाद


‘इस प्रकार मेरे यहाँ उपस्थित हो मेरे द्वारा विधिर्पूवक अर्पित की हुई इस पूजा को आप लोग ग्रहण क्यों नहीं करते हैं? फिर मेरे यहाँ आने का प्रयोजन ही क्या है?’ जरासंध के ऐसा कहने पर बोलने में चतुर महामना श्रीकृष्ण स्निग्ध एवं गम्भीर वाणी में इस प्रकार बोले- श्रीकृष्ण ने कहा- 'राजन्! तुम हमें (वेष के अनुसार) स्नातक ब्राह्मण समझ सकते हो। वैसे तो स्नातक व्रत का पालन करने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनों वर्णों के लोग होते हैं। इन स्नातकों में कुछ विशेष नियम का पालन करने वाले होते हैं और कुछ साधारण। विशेष नियम का पालन करने वाला क्षत्रिय सदा लक्ष्मी को प्राप्त करता है। जो पुष्प् धारण करने वाले हैं, उनमें लक्ष्मी का निवास ध्रुव है, इसीलिये हम लोग पुष्प मालाधारी हैं। क्षत्रिय का बल और पराक्रम उसकी भुजाओं में होता है, वह बोलने में वैसा वीर नहीं होता।

बृहद्रथनन्दन! इसीलिये क्षत्रिय का वचन धृष्टतारहित (विनययुक्त) बताया गया है। विधाता ने क्षत्रियों का अपना बल उनकी भुजाओं में ही भर दिया है। राजन्! यदि आज उसे देखना चाहते हो, तो निश्चय ही देख लोगे। धीर मनुष्य शत्रु के घर में बिना दरवाजे के और मित्र के घर में दरवाजे से जाते हैं। शत्रु और मित्र के लिये ये धर्मतः द्वार बतलाये गये हैं। हम अपने कार्य से तुम्हारे घर आये हैं; अतः शत्रु से पूजा नहीं ग्रहण कर सकते। इस बात को तुम अच्छी तरह समझ लो। यह हमारा सनातन व्रत है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत सभा पर्व के अन्तर्गत जरासंध पर्व में श्रीकृष्ण जरासंध-संवाद-विषयक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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