एकविंश (21) अध्याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 29-46 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय! ऐसा कहकर वे तीनों खडे़ हो गये तथा कभी राजा जरासंध को और कभी आपस में एक दूसरे को देखने लगे। राजेन्द्र! ब्राह्मणों के छद्मवेष में छिपे हुए उन पाण्डव तथा यादव वीरों को लक्ष्य करके जरासंध ने कहा- ‘आप लोग बैठ जायँ’। फिर वे सभी बैठ गये। वे तीनों पुरुष सिंह महान् यज्ञ में प्रज्वलित तीन अग्नियों की भाँति अपनी अपूर्व शोभा से उद्भासित हो रहे थे। कुरुनन्दन! उस समय सत्यप्रतिज्ञ राजा जरासंध ने वेषग्रहण के विपरीत आचरण वाले उन तीनों की निन्दा करते हुए कहा- ‘ब्राह्मणों! इस मानव जगत् में सर्वत्र प्रसिद्ध है कि स्नातक व्रत का पालन करने वाले ब्राह्मण समावर्तन आदि विशेष निमित्त के बिना माला और चन्दन नहीं धारण करते। मुझे भी अच्छी तरह मालूम है। आप लोग कौन है? आप के गले में फूलों की माला है और भुजाओं में धनुष की प्रत्यञ्चा की रगड़ का चिह्न स्पष्ट दिखायी देता है। आप लोग क्षत्रियोचित तेज धारण करते हैं, परंतु ब्राह्मण होने का परिचय दे रहें है। इस प्रकार भाँति-भाँति के रंगीन कपड़े पहने और अकारण माला तथा चन्दन लगाये हुए आप कौन हैं? सच बताइये। राजाओं में सत्य की ही शोभा होती है। चैत्यक पर्वत के शिखर को तोड़कर राजा का अपराध करके भी उससे भयभीत न हो छद्मवेष धारण किये द्वार के बिना ही इस नगर में जो आप लोग घुस आये हैं, इसका क्या कारण हैं? बताइये, ब्राह्मण के तो प्रायः वचन में ही वीरता होती है, उसकी क्रिया में नहीं। आप लोगों ने जो यह पर्वतशिखर तोड़ने का काम किया है, वह आपके वर्ण तथा वेष के सर्वथा विपरीत है, बताइये आपने आज क्या सोच रखा है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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