अष्टनवतितम (98) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टनवतितम अध्याय: श्लोक 45-51 का हिन्दी अनुवाद
जम्भा वृत्रा सुर, बलासुर, पाकासुर, सैकड़ौं माया जानने वाले विरोचन, दुर्जय वीर नमुचि, विविध माया विशारद शम्बरासुर, दैत्यवंशी विप्रचित्ति, सम्पुर्ण दान वदल तथा प्रहृाद को भी युद्ध में मार कर मैं देवराज के पद पर प्रतिष्ठित हुआ हूँ। भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठिर! इन्द्र का यह वचन सुनकर राजा अम्बरीष ने मन-ही-मन इसे स्वीकार किया और वे यह मान गये कि योद्धाओं को स्वतः सिद्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में इन्द्र और अम्बरीष का संवादविषयक अठ्ठानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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