महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 88 श्लोक 14-33

अष्टाशीतितम (88) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 14-33 का हिन्दी अनुवाद


शराब खाना खोलने वाले वेश्याएँ कुट्ठनियाँ वेश्याओं के दलाल जुआरी तथा ऐसे ही बुरे पेशे करने वाले और भी जितने लोग हों वे समूचे राष्ट्र को भी हानि पहुँचाते हैं अतः इन सबको दण्ड देकर दबाये रखना चाहिये यदि ये राज्य में टिके रहते हैं तो कल्याण मार्ग पर चलने वाली प्रजा को बडी़ बाधाएँ पहुँचाते हैं। मनु जी ने बहुत पहले से समस्त प्राणियों के लिए यह नियम बना दिया है कि आपत्तिकाल को छोड़ कर अन्य समय में कोई किसी से कुछ न माँगे। यदि ऐसी व्यवस्था न होती तो सब लोग भीख माँगकर ही गुजारा करते कोई भी यहाँ कर्म नहीं करता ऐसी दशा में ये सम्पूर्ण जगत् के लोग निःसंदेह नष्ट हो जाते। जो राजा इन सबको नियम अन्दर रखने में होकर भी इन्हें काबू में नहीं रखता वह इनके किये हुए पाप का चौथाई भाग स्वंय भोगता है ऐसा श्रुति का कथन है। नरेश्वर! राजा जैसे प्रजा के पाप का चतुर्थाश उसे प्राप्त होता है अतः राजा को चाहिये कि वह सदा पापियों को दण्ड देकर उन्हें दबाये रखे। जो राजा इन पापियों को नियन्त्रण नहीं रखता वह स्वयं भी पापाचारी माना जाता है तथा जो पापियों का दमन करता है वह प्रजा के किये हुए धर्म का चौथाई भाग स्वयं प्राप्त कर लेता है। उपर जो मदिरालय तथा वेश्यालय आदि स्थान बताये गये है उन पर रोक लगा देनी चाहिये क्योंकि इससे काम विषयक नाश आसक्ति बढती है जो धन-वैभव तथा कल्याण का नाश करने वाली है काम में आसक्त हुआ पुरुष कौन-सा ऐसा न करने योग्य काम है जिसे छोड़ दे? आसक्ति के वशीभूत हुआ मानव मांस खाता मदिरा पीता और परधन तथा पर स्त्री का अपहरण करता है साथ ही दूसरों को भी यही सब करने का उपदेश देता है। जिन लोगों के पास कुछ भी सग्रंह नहीं है वे यदि आपत्ति के समय ही याचना करें तो उन्हें धर्म समझकर और दया करके ही देना चाहिये किसी भय या दबाव में पड़कर नहीं। तुम्हारे राज्य में भिखमंगे और लुटेरे न हों; क्योंकि ये प्रजा के धन को केवल छीनने वाले हैं, उनके ऐश्वर्य को बढाने वाले नहीं है। जो सब प्राणियों पर दया करते और प्रजा की उन्नति में योग देते है, वे तुम्हारे राष्ट्र में निवास करे। जो लोग प्राणियों का विनाश करने वाले है, वे न रहे। महाराज! जो राजकर्मचारी उचित से अधिक कर वसूल करते या कराते हों, वे तुम्हारें हाथ से दण्ड पाने के योग्य है।

दूसरे अधिकारी आकर उन्हें ठीक-ठीक भेंट या कर लेने का अभ्यास करावें। खेती, गोरक्षा, वाणिज्य तथा इस तरह के अन्य व्यवसायों को जो जिस कर्म को करने में कुशल हो, तदनुसार अधिक आदमियों के द्वारा सम्पन्न कराना चाहिये। मनुष्य यदि कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य आरम्भ कर दे तथा चारों और लुटेरों के आक्रमण से कुछ-कुछ प्राण संशय की सी स्थिति में पहुँच जाय तो इससे राजा की बड़ी निंदा होती है। राजा को चाहिये कि वह देश के धनी व्यक्तियों का सदा भोजन-वस्त्र और अन्नपान आदि के द्वारा आदर सत्कार करे और उनसे विनयपूर्वक कहे, आप लोग मेरे सहित मेरी इन प्रजाओं पर कृपादृष्टि रखें। भरतनन्दन! धनी लोग राष्ट्र के मुख्य अंग है। धनवान पुरुष समस्त प्राणियों में प्रधान होता है, इसमें संशय नहीं है। विद्वान, शूरवीर, धनी, धर्मनिष्ठ, स्वामी, तपस्वी, सत्यवादी तथा बुद्धिमान मनुष्य ही प्रजा की रक्षा करते हैं। अतः भूपाल! तुम समस्त प्राणियों से प्रेम रखों तथा सरल, सरलता, क्रोधहीनता और दयालुता आदि सद्धर्मों का पालन करो। नरेश्वर! ऐसा करने से तुम्हें दण्डधारण की शक्ति, खजाना, मित्र तथा राज्य की भी प्राप्ति होगी। तुम सत्य और सरलता में तत्पर रहकर मित्र, कोश और बल से सम्पन्न हो जाओगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में कोशसंग्रह के प्रकार का वर्णनविषयक अठ्टासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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