महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 339 श्लोक 127-141

एकोनचत्वारिंशदधिकत्रिशततम (339) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकत्रिशततम अध्‍याय: श्लोक 127-141 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर! जैसे देवताओं और असुरों ने समुद्र को पथकर उससे अमृत निकाला था, उसी प्रकार प्राचीनकाल में ब्राह्मणों ने सारे शास्त्रों को मथकर इस अमृतमयी कथा को यहाँ प्रकाशित किया। जो मनुष्य प्रतिदिन इसका पाठ करेगा और जो इसे सदा सुनेगा, वह भगवान् के प्रति अनन्य भाव को प्रापत होकर उनके अनन्य भक्तों में एकाग्रचित्त से अनुरक्त हो श्वेत नामक महाद्वीप में पहुँच जायेगा और वह मनुष्य चन्द्रमा के समान कान्तिमान् रूप धारण करके उन सहस्रों किरणों वाले भगवान् नारायण में प्रवेश करेगा, इसमें संशय नहीं है। इस कथा को आदि से ही सुनकर रोगी रोग से मुक्त हो जायगा, जिज्ञासु पुरुष को इच्छानुसार ज्ञान प्राप्त होगा और भक्त पुरुष भक्तजनोचित गति को प्राप्त होगा।। राजन्! तुम्हें भी सदा ही भगवान् पुरुषोत्तम की पूजा करनी चाहिये; क्योंकि वे ही सम्पूर्ण जगत् के माता, पिता और गुरु हैं। महाबाहु युधिष्ठिर! ब्राह्मण हितैषी परम बुद्धिमान् सनातन पुरुष भगवान् जनार्दनदेव तुम पर सदा प्रसन्न रहें।।

वैशम्पायनजी कहते हैं - ‘ जनमेजय! इस उत्तम उपाख्यान को सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर और उनके सभी भाई भगवान् नारायण के परम भक्त हो गये। भरतनन्दन! वे नित्यप्रति भगवन्नाम के जप में तत्पर होकर ‘भगवान् पुरुषोत्तम की जय हो’ ऐसी वाणी बोला करते थे। जो हमारे परमगुरु तुनिवर श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास हैं, वे भी परम उत्तम नारायण मन्त्र का जाप करते हुए निरन्तर उनकी महिमा का गान करते रहते हैं। व्यासजी सदा ही आकाश मार्ग से अमृतनिधि क्षीरसागर के तट पर जाकर देवेश्वर श्रीहरि की पूजा करने के पश्चात् पुनः अपने आश्रम पर लौट आते हैं।

भीष्मजी कहते हैं - युधिष्ठिर! नारदजी का कहा हुआ यह सारा उपाख्यान मैंने तुमसे कह सुनाया। यह पूर्वपरम्परा से पहले मेरे पिताजी को प्राप्त हुआ। फिर पिताजी ने मुझसे कहा था। सुतपुत्र बोले - शौनक! वैशम्पायनजी का कहा हुआ यह सारा आख्यान मैंने तुमसे कहा है। जनमेजय ने इसे सुनकर उत्तम विधि पूर्वक भगवान् का यजन किया। तुम लोग भी तपस्वी और व्रत का पालन करने वाले हो। नैमिषारण्य में निवास करने वाले प्रायः सभी ऋषि प्रमुख वेदवेत्त हैं और सभी श्रेष्ठ द्विज शोनक के इस महायज्ञ में एकत्र हुए हैं। आप सब लोग विधिवत् हवन करके उत्तम यज्ञों द्वारा उन सनातन परमेश्वर का यजन करें। यह परम्परा से प्राप्त हुआ उत्तम आख्यान मेरे पिता ने पहले-पहल मुझसे कहा था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में नारायण का माहात्मय विषयक तीन सौ उनतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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