महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 331 श्लोक 58-65

एकोनत्रिंशदधिकत्रिशततम (331) अध्याय: श्लोक शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनत्रिंशदधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 58-65 का हिन्दी अनुवाद


इस शरीर को सूर्यलोक में छोड़कर मैं ऋषियों के साथ सूर्यदेव के अत्यनत दुःसह तेज में प्रवेश कर जाऊँगा। इसके लिये मैं नग-नाग, पर्वत, पृथ्वी, दिशा, द्युलोक, देव, दानव, गन्धर्व, पिशाच, सर्प और राक्षसों से आज्ञा माँगता हूँ। आज मैं निःसंदेह जगत् के सम्पूर्ण भूतों में प्रवेश करूँगा। समस्त देवता और ऋषि मेरी योगशक्ति का प्रभाव देखें। ऐसा निश्चय करके शुकदेवजी ने विश्वविख्यात देवर्षि नारदजी से आज्ञा माँगी। उनसे आज्ञा लेकर वे अपने पिता व्यासजी के पास गये। वहाँ अपने पिता महात्मा श्रीकृष्णद्वैपायन मुनि को प्रणाम करके शुकदेवजी ने उनकी प्रदक्षिणा की और उनसे जाने की आज्ञा माँगी। शुकदेव की यह बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए महात्मा व्यास ने उनसे कहा- ‘बेटा! बेटा! आज यहीं रहो, जिससे तुम्हें जी-भर निहारकर अपने नेत्रों को तृप्त कर लूँ’। परंतु शुकदेवजी स्नेह का बन्धन तोड़कर निरपेक्ष हो गये थे। तत्त्व के विषय में उन्हें कोई संशय नहीं रह गया था; अतः बारंबार मोक्ष का ही चिन्तन करते हुए उन्होंने वहाँ से जाने का ही विचार किया। पिता को वहीं छोड़कर मुनिश्रेष्ठ शुकदेव सिद्ध समुदाय से सेवित विशाल कैलासशिखर पर चले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेव का प्रस्थान विषयक तीन सौ इकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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