महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 266 श्लोक 59-74

षट्षष्‍टयधिकद्विशततम (266) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: षट्षष्‍टयधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 59-74 अध्याय: का हिन्दी अनुवाद


राजन! इस प्रकार दुखी हुए महर्षि गौतम ने घर आने पर अपने पुत्र चिरकारी को पास ही खड़ा देखा। पिता को उपस्थित देख चिरकारी बहुत दुखी हुआ। वह हथियार फेंककर उनके चरणों में मस्‍तक झुका उन्‍हें प्रसन्‍न करने की चेष्‍टा करने लगा। गौतम ने देखा, चिरकारी पृथ्‍वी पर माथा टेक कर पड़ा है और पत्नि लज्‍जा के मारे निश्‍चेष्‍ट खड़ी है। यह देखकर उन्‍हें बड़ी प्रसन्‍नता हुई। एकान्‍त वन में उस आश्रम के भीतर रहने वाले महामना गौतम ने अपनी पत्नि तथा एकाग्रचित्त पुत्र चिरकारी को कभी अपने से अलग नहीं‍ किया। अपने आवश्‍यक कर्म जप-ध्‍यान आदि के लिये महर्षि गौतम के बाहर चले जाने पर उनका पुत्र चिरकारी यद्यपि हाथ में हथियार लेकर खड़ा था तथापि माता की रक्षा के लिये वह विनीत भाव से कुछ सोचता-विचारता रहा। इसीलिये माता को मार डालने का जो आदेश प्राप्‍त हुआ था, वह पालित न हो सका।

पुत्र को अपने चरणों में नतमस्‍तक हुआ देख गौतम के मन में यह विचार हुआ कि सम्‍भवत: चिरकारी भय के मारे हथियार उठाने की चपलता को छिपा रहा है। तब पिता ने चिरकाल तक उसकी प्रशंसा करके देर तक उसका मस्‍तक सूँघा और चिरकाल तक दोनों भुजाओं से खींचकर उसे हृदय से लगाये रखा और आर्शीवाद देते हुए कहा- 'बेटा! चिरंजीवी हो।' महामते! इस प्रकार प्रेम और हर्ष से भरे हुए गौतम ने पुत्र का अभिनन्‍दन करके यह बात कही- ‘बेटा चिरकारी! तेरा कल्‍याण हो। तू चिरकाल तक चिरकारी एवं चिरंजीवी बना रहे। सौम्‍य! यदि तू चिरकाल तक ऐसे ही स्‍वभाव का बना रहा तो मैं दीर्घकाल तक कभी दुखी नहीं होऊँगा।' तदनन्‍तर विद्वान मुनिश्रेष्ठ गौतम ने कुछ गाथाएं गायीं। चिरकाल तक सोच-विचारकर काम करने वाले धीर पुरुषों में जो गुण होते हैं, उनसे संबंध रखने वाली वे गाथाएं इस प्रकार हैं- 'चिरकाल तक सोच-विचार करके किसी के साथ मित्रता जोड़नी चाहिये और जिसे मित्र बना लिया, उसे सहसा नहीं छोड़ना चाहिये।

यदि छोड़ने की आवश्‍यकता पड़ ही जाय तो उसके परिणाम पर चिरकाल तक विचार कर लेना चाहिये। दीर्घकाल तक सोच-विचार करके बनाया हुआ जो मित्र है, उसी की मैत्री चिरकाल तक टिक पाती है। राग, दर्प, अभिमान, द्रोह, पापाचरण और किसी का अप्रिय करने में जो विलम्‍ब करता है, उसकी प्रशंसा की जाती है। बन्‍धुओं, सुहृदों, सेवकों और स्त्रियों के छिपे हुए अपराधों के विषय में कुछ निर्णय करने में भी जो जल्‍दबाजी न करके दीर्घकाल तक सोच-विचार करता है, उसी की प्रशंसा की जाती है’। भारत! कुरुनन्‍दन! इस प्रकार गौतम वहाँ अपने पुत्र के विलम्‍बपूर्वक कार्य करने के कारण बहुत प्रसन्‍न हुए थे। इस प्रकार सभी कार्यों में विचार करके चिरकाल के पश्चात किसी निश्‍चय पर पहुँचने वाले पुरुष को दीर्घकाल तक पश्चाताप नहीं करना पड़ता। जो चिरकाल तक रोष को अपने भीतर ही दबाये रखता है और रोषपूर्वक किये जाने वाले कर्म को देर तक रोके रहता है, उसके द्वारा कोई कर्म ऐसा नहीं बनता, जो पश्‍चाताप कराने वाला हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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