महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 247 श्लोक 17-25

सप्‍तचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (247) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम श्लोक 17-25 का हिन्दी अनुवाद

मनुष्‍य के शरीर में पाँच इन्द्रियाँ है। छठा तत्‍व मन है। सातवाँ तत्‍व बुद्धि और आठवाँ क्षेत्रज्ञ बताया गया है। आँख देखने का काम करती है, (यह उपलक्षण है। इससे सभी इन्द्रियों के कार्य का लक्ष्‍य कराया गया है) मन संदेह करता है और बुद्धि उसका निश्‍चय करती है; किंतु क्षेत्रज्ञ (आत्‍मा) उन सबका साक्षी कहलाता है। रजोगुण, तमोगुण और सत्‍वगुण-ये तीनों अपने कारणभूत मूल प्रकृति से प्रकट हुए है; वे तीनों गुण सब प्राणियों में समान रूप से रहते हैं। उनकी पहचान उनके कार्यो द्वारा करे। जब अपने में कुछ प्रसन्‍नता युक्‍त विशुद्ध और शान्‍त सा भाव दिखायी दे, तब यह निश्‍चय करे कि सत्‍वगुण प्रवृत्त हुआ है। शरीर अथवामन में जब कुछ संतापयुक्‍त भाव दृष्टिगोचर हो, तब वहाँ यह समझ लेना चाहिये कि रजोगुण की प्रवृत्ति हो रही है।

जब मोह युक्‍त भाव मनपर छा जाय, किसी भी विषय में कोई बात स्‍पष्‍ट न जान पड़े, जब तर्क भी का न दे और किसी तरह कोई बात समझ में न आवे, तब समझना चाहिये कि तमोगुण प्रवृत्त हुआ है। जब अतिशय हर्ष, प्रेम, आनन्‍द, समता और स्‍वस्‍थचित्तता ये सद्गुण अकस्‍मात् या किसी कारणवश विकसित हों, तब समझना चाहिये कि ये सात्त्विक गुण हैं। अभिमान, असत्‍य भाषण, लोभ, मोह और असहनशीलता – ये दोष चाहे किसी कारण से प्रकट हुए हों अथवा बिना कारण के हर परिस्थिति में रजोगुण के ही चिह्र माने गये हैं। इसी प्रकार मोह, प्रमाद, निद्रा, तन्‍द्रा और अज्ञान जिस किसी कारण से हो जायें, उन्‍हें तमोगुण का कार्य जानना चाहिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेव का अनुप्रश्‍नविषयक दौ सो सैंतालीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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