महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 118 श्लोक 21-28

अष्‍टादशाधिकशततम (118) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: अष्‍टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-28 का हिन्दी अनुवाद


अच्‍छे मनुष्‍य का संग्रह करे, जड़ता को त्‍याग दे, सदा प्रसन्‍नमुख रहे, सेवकों का सदा ख्‍याल रखे, किसी पर क्रोध न करे, अपना हृदय विशाल बनाए रखे। न्‍यायोचित दण्‍ड दे, दण्‍ड का कभी त्‍याग न करे, धर्म कार्य का उपदेश दे, गुप्‍तचररुपी नेत्रों द्वारा राज्‍य की देखभाल करें, प्रजा पर कृपादृष्टि रखे तथा सदा ही धर्म और अर्थ के उपार्जन में कुशलतापूर्वक लगा रहे। ऐसे सैकड़ों गुणों से सम्‍पन्‍न राजा ही प्रजा के लिये वांछनीय होता है। नरेन्‍द्र! राज्‍य की रक्षा में सहायता देने वाले समस्‍त सैनिक भी इसी प्रकार श्रेष्‍ठ गुण-समूहों से सम्‍पन्‍न होने चाहिये, इस कार्य के लिये अच्‍छे पुरुषों की खोज करनी चाहिये तथा अपनी उन्‍नति की इच्‍छा रखने वाले राजा को कभी अपने सैनिकों का अपमान नहीं करना चाहिये। जिसके योद्धा युद्ध में वीरता दिखानेवाले, कृतज्ञ, शस्‍त्र चलाने की कला में कुशल, धर्मशास्‍त्र के ज्ञान से सम्‍पन्‍न, पैदल सैनिकों से घिरे हुए, निर्भय, हाथी की पीठ पर बैठकर युद्ध करने में समर्थ, रथचर्या में निपुण तथा धनुर्विद्या में प्रवीण होते हैं, उसी राजा के अधीन इस भूमण्‍डल का राज्‍य होता है।

जो जाति भाईयों का अपमान तथा सेवकों के प्रति शठता कभी नहीं करता और कार्यसाधन मे कुशल हैं, उसी राजा के अधिकार मे यह पृथ्‍वी रहती है। जिस राज्‍य में आलस्‍य, निद्रा, दुर्व्‍यसन तथा अत्‍यन्‍त हास्‍यप्रियता-ये दुगुर्ण नहीं हैं, उसी के अधिकार में यह पृथ्‍वी दीर्घकाल तक रहती है। जो बड़े-बूढों की सेवा करने वाला, महान् उत्‍साही, चारों वर्णों का रक्षक तथा सदा धर्माचरण में तत्‍पर रहता है, उसी के पास यह पृथ्‍वी चिरकाल तक स्थिर रहती है। जो राजा नीतिमार्ग का अनुसरण करता, सदा ही उद्योग मे तत्‍पर रहता और शत्रुओं की अवहेलना नहीं करता, उसके अधिकार में दीर्घकाल तक इस पृथ्‍वी का राज्‍य बना रहता है। पूर्वकाल में मनुजी ने पुरुषार्थ, दैव तथा उन दोनों के अनेक भेंदों का वर्णन किया था। वह बताता हूँ, सुनो। कुरुश्रेष्‍ठ! बृहस्‍पतिजी ने नरेशों के लिये सदा ही उद्योगशील बने रहने का उपदेश दिया है। तुम सदा नीति और अनीति के विधान को जानो। जो शत्रुओं के छिद्र देखे, सुहदों का उपकार करे और सेवकों की विशेषता को समझे, वह राज्‍य के फल का भागी होता है। जो राजा सदा सबके संग्रह में संलग्‍न, उद्योगशील और मित्रों से सम्‍पन्‍न होता है, वही सब राजाओं में श्रेष्‍ठ है। भारत! जो उपर्युक्‍त मनुष्‍यों का संग्रह करता है, वह केवल एक सहस्‍त्र अश्‍वारोही वीरों के द्वारा सारी पृथ्‍वी को जीत सकता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तगर्त राजधर्मानुशासनपर्वमें कुता और ऋषि का संवादविषयक एक सौ अठारहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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