त्रयधिकशततम (103) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्रयधिकशततम अध्याय: श्लोक 43-53 का हिन्दी अनुवाद
इन्द्र ने पूछा- द्विजश्रेष्ठ! दुष्ट के कौन कौन से लक्षण है? मैं दुष्ट को कैसे पहचानूँ? मेरे इस प्रश्न का मुझे उत्तर दीजिये। बृहस्पति जी ने कहा- देवराज! जो परोक्ष में किसी व्यक्ति के दोष-ही बताता है, उसके सद्गुणों में भी दोषारोपण करता रहता है और यदि दूसरे लोग उसके गुणों का वर्णन करते हैं तो जो मुँह फेरकर चुप बैठ जाता है, वही दुष्ट माना जाता है। चुप बैठने पर भी उस व्यक्ति की दुष्टता को इस प्रकार जाना जा सकता है। निःश्वास छोड़ने का कोई कारण न होने पर भी जो किसी के गुणों का वर्णन होते समय लंबी-लंबी साँस छोड़े, ओठ चबाये और सिर हिलाये, वह दुष्ट है। जो बारंबार आकर संसर्ग स्थापित करता है, दूर जाने पर दोष बताता है, कोई कार्य करने की प्रतिज्ञा करके भी आखँ से ओझल होने पर उस कार्य को नहीं करता है और आखँ के सामने होने पर भी कोई बातचीत नहीं करता, उसके मन में दुष्टता भरी है, ऐसा जानना चाहिये। जो कहीं से आकर साथ नहीं, अलग बैठकर खाता है और कहता है, आज का जैसा भोजन चाहिये, वैसा नहीं बना है (वह भी दुष्ट है )। इस प्रकार बैठने, सोनेे और चलने-फिरने आदि में दुष्ट व्यक्ति के दुष्टता पूर्ण भाव विशेष रूप से देखे जातें है। यदि मित्र के पीड़ित होने पर किसी को स्वयं भी पीड़ा होती हो और मित्र के प्रसन्न रहने पर उसके मन में भी प्रसन्नता छायी रहती हो तो यही मित्र के लक्षण है। इसके विपरित जो किसी को पीड़ित देखकर प्रसन्न होता और प्रसन्न देखकर पीडा़ का अनुभव करता है तो समझना चाहिये कि यह शत्रु के लक्षण हैं। देवेश्वर! इस प्रकार जो मनुष्यों के लक्षण बताये गये हैं, उनको समझना चाहिये। दुष्ट पुरुषों का स्वभाव अत्यन्त प्रबल होता है। सुरश्रेष्ठ! देवेश्वर! शास्त्र के सिद्धान्त का यथावत् रूप् से विचार करके ये मैनें तुम से दुष्ट पुरुष की पहचान कराने वाले लक्षण बताये हैं। भीष्म जी कहते है- युधिष्ठिर! शत्रुओं के संहार में तत्पर रहने वाले शत्रुनाशक इन्द्र ने बृहस्पति जी का वह यथार्थ वचन सुनकर वैसा ही किया। उन्होंने उपयुक्त समय पर विजय के लिये यात्रा की और समस्त शत्रुओं को अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्वं में इन्द्र और बृहस्पति का संवादविषयक एक सौ तीनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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