महाभारत शल्य पर्व अध्याय 3 श्लोक 16-37

तृतीय (3) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 16-37 का हिन्दी अनुवाद

'जब मैं सेना के पिछले भाग में खड़ा हो हाथ में धनुष ले युद्ध करूँगा, उस समय कुन्तीकुमार अर्जुन मुझे लाँघकर आगे नहीं बढ़ सकेंगे; अतः तुम घोड़ों को आगे बढ़ओ। जैसे महासागर तट को नहीं लाँघ सकता, उसी प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन समरांगण में युद्ध करते हुए मुझ दुर्योधन को लाँघकर आगे जाने की हिम्मत नहीं कर सकते। आज मैं श्रीकृष्ण, अर्जुन, मानी भीमसेन तथा शेष बचे हुए शत्रुओं का संहार करके कर्ण के ऋण से उऋण हो जाऊँगा'। कुरुराज दुर्योधन के इस श्रेष्ठ वीरोचित्त वचन को सुनकर सारथि ने सोने के साज-बाज से ढके हुए अश्वों को धीरे से आगे बढ़ाया। माननीय नरेश! उस समय हाथी, घोडे़ और रथों से रहित पच्चीस हजार पैदल सैनिक धीरे-ही-धीरे पाण्डवों पर चढ़ाई करने लगे। तब क्रोध में भरे हुए भीमसेन और द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने अपनी चतुरंगिणी सेना के द्वारा उन्हें तितर-बितर करके बाणों द्वारा अत्यन्त घायल कर दिया। वे समस्त सैनिक भी भीमसेन और धृष्टद्युम्न का डटकर सामना करने लगे। दूसरे बहुत-से योद्धा वहाँ उन दोनों के नाम-ले-लेकर ललकारने लगे।

युद्धस्थल में सामने खडे़ हुए उन योद्धाओं के साथ जूझते समय भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ। वे तुरन्त ही रथ से उतर कर हाथ में गदा ले उन सबके साथ युद्ध करने लगे। युद्धधर्म के पालन की इच्छा रखने वाले कुन्तीकुमार भीमसेन स्वयं रथ पर बैठकर भूमि पर खडे़ हुए पैदल सैनिकों के साथ युद्ध करना उचित नहीं समझा। वे अपने बाहुबल का भरोसा करके उन सबके साथ पैदल ही जूझने लगे। उन्होंने दण्डपाणि यमराज के समान सुवर्णपत्र से जटित विशाल गदा लेकर उसके द्वारा आपके समस्त सैनिकों का संहार आरम्भ किया। उस समय अपने प्राणों और बन्धु-बान्धवों का मोह छोड़कर रोष और आवेश में भरे हुए पैदल सैनिक युद्धस्थल में भीमसेन की ओर उसी प्रकार दौडे़, जैसे पतंग जलती हुई आग पर टूट पड़ते हैं। क्रोध मे भरे हुए वे रणदुर्भद योद्धा भीमसेन से भिड़कर सहसा उसी प्रकार आर्तनाद करने लगे, जैसे प्राणियों के समुदाय यमराज को देखकर चीख उठते हैं। उस समय भीमसेन रणभूमि में बाज की तरह विचर रहे थे। उन्होंने तलवार और गदा के द्वारा आपके उन पच्चीस हजार योद्धाओं को मार गिराया। सत्यपराक्रमी महाबली भीमसेन उस पैदल-सेना का संहार करके धृष्टद्युम्न को आगे किये पुनः युद्ध के लिये डट गये।

दूसरी ओर पराक्रमी अर्जुन ने रथसेना पर आक्रमण किया। माद्रीकुमार नकुल-सहदेव तथा महाबली सात्यकि दुर्योधन की सेना का विनाश करते हुए बड़े वेग से शकुनि पर टूट पड़े। उन सबने शकुनि के बहुत से घुड़सवारों को अपने पैने बाणों से मारकर बड़ी उतावली के साथ वहाँ शकुनि पर धावा किया। फिर तो उनमें भारी युद्ध छिड़ गया। राजन! तदनन्तर अर्जुन ने अपने त्रिभुवनविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए आपके रथियों की सेना में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण जिसके सारथि हैं, उस श्वेत घोड़ों से रहित तथा बाणों से आच्छादित हुए पच्चीस हजार पैदल योद्धाओं ने कुन्तीकुमार अर्जुन पर चढ़ाई की। उस पैदल सेना का वध करके पांचाल महारथी धृष्टद्युम्न भीमसेन को आगे किये शीघ्र ही वहाँ दृष्टिगोचर हुए। पांचालराज के पुत्र धृष्टद्युम्न महाधनुर्धर, महायशस्वी तेजस्वी तथा शत्रुसमूह का संहार करने में समर्थ थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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