त्रयस्त्रिश (33) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: त्रयस्त्रिश अध्याय: श्लोक 56-58 का हिन्दी अनुवाद
दुर्योधन का यह वचन सुनकर विजय की इच्छा रखने वाले समस्त पाण्डवों और सृंजयों ने भी उसकी बड़ी सराहना की। राजन! जैसे मतवाले हाथी को मनुष्य ताली बजा कर कुपित कर देते हैं, उसी प्रकार उन्होंने बारंबार ताल ठोककर राजा दुर्योधन के युद्ध विषयक हर्ष और उत्साह को बढ़ाया। उस समय वहाँ विजयाभिलाषी पाण्डवों के हाथी बारंबार चिग्घाड़ने और घोड़े हिनहिनाने लगे। साथ ही उनके अस्त्र शस्त्र दीप्ति से प्रकाशित हो उठे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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