महाभारत विराट पर्व अध्याय 66 श्लोक 11-20

षट्षष्टितम (66) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 11-20 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन के बजाये हुए उस शंख की आवाज से समस्त कौरव वीर मोहित ( मूर्च्छित ) हो गये और अपने दुर्लभ धनुषों को त्यागकर सबके सब गहरी शान्ति ( बेहोशी ) में डूब गये। उन कौरव महारथियों के अचेत हो जाने पर अर्जुन को उत्तरा की कही हुई बातें स्मरण हो आयीं और उन्होंने मत्स्य नरेश के पुत्र उत्तर से कहा- ‘नरवीर! ये कौरव अभी बेहोश पड़े हुए हैं। ये जब तक होश में आवें, उसके पहले ही सेना के बीच से निकल जाओ। आचार्य द्रोण और कृपाचार्य के शरीर पर जो श्वेत वस्त्र सुशोीिात हैं, कर्ण के अंगों पर जो सुन्दर पीले रंग का वस्त्र है, अश्वत्थामा तथा राजा दुर्योधन के शरीर पर जो नीले रंग के कपड़े हैं, उन सबको उतार लो। ‘मैं समझता हूँ, पितामह भीष्म को होश बना हुआ है; क्योंकि वे इस सम्मोहन अस्त्र को निवारण करने की विधि जानते हैं। उनके घोड़ों को बाँयीं ओर छोड़कर जाना; क्योंकि जिनकी चेतना लुप्त नहीं हुई है, ऐसे वीरों के निकट से जाना हो, तो इसी प्रकार जाना चाहिये’। तब महामना विराट पुत्र घोड़ों की रास छोड़कर रथ से कूद पड़ा और उन महारथियों के कपड़े लेकर फिर शीघ्र ही अपनी रथ पर चढ़ गया। तत्पश्चात विराट कुमार ने सोने के साज-सामान से सुशोभित उन चारों सुन्दर घोड़ों को हाँक दिया। वे श्वेत घोड़े अर्जुन को रथ में लिये हुए रणभूमि के मध्य भाग से निकले और रथारोहियों की ध्वजा युक्त सेना का घेरा पार करके बाहर पहुँच गये। मनुष्यों में प्रणान वीर अर्जुन को इस प्रकार जाते देख वेगशाली भीष्म ने बाण मारकर उन्हें घायल कर दिया। तब अर्जुन ने भी भीष्म के घोड़ों को मारकर दा बाणों से उन्हें भी घायल कर दिया। दुर्भेद्य धनुष वाले अर्जुन भीष्म को युद्ध भूमि में छोड़कर और उनके सारथि को बाण से बींधकर रथों के घेरे से बाहर जा खड़े हुए। उस समय वे बादलों को छिन्न भिन्न करके प्रकाशित होने वाले सूर्य देव की भाँति शोभा पा रहे थे। थोड़ी देर बाद होश में आकर कौरव वीरों ने देखा, देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी कुन्ती पुत्र अर्जुन युद्ध में रथों के घेरे से बाहर हो अकेले खड़े हैं।

उन्हें इस अवस्था में देखकर धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन तुरंत बोल उठा- ‘पितामह! यह आपके हाथ से कैसे बच गया? आप इसे इस प्रकार मथ डालिये, जिससे यह छूटने प पावे।’ तब शान्तनु नन्दन भीष्म ने हँसकर दुर्योधन से कहा- ‘राजन्! जब तू अपने विचित्र धनुष और बाणों को त्यागकर यहाँ गहरी शानित में डूबा हुआ अचेत पड़ा था, उस समय तेरी बुद्धि कहाँ गयी थी? और पराक्रम कहाँ था?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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