महाभारत विराट पर्व अध्याय 61 श्लोक 26-37

एकषष्टितम (61) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 26-37 का हिन्दी अनुवाद


‘तुम्हें यह मालूम होना चाहिये कि मैंने मालूम होना चाहिये कि मैंने धनुष पकड़ते समय मुट्ठी को दृढ़ रखना इन्द्र से, बाण चलाते समय हाािों की फुर्ती ब्रह्माजी से तथा संकट के समय विचित्र प्रकार के तुमुल युद्ध करने की कला प्रजापति से सीखी है। ‘पहले की बात है, मैंने समुद्र के उस पार हिरण्यपुर में निवास करने वाले साठ हजार भयंकर धनुर्धर महारथियों को परास्त किया था। ‘आज देख लेना, जैसे प्रबल वेग से आयी हुई जल की बाढ़ किनारों को काट - काट कर गिरा देती है, उसी प्रकार मैं कौरव दल के सैन्य समूहों को गिराऊँगा। ‘कौरवों की सेना एक जंगल के समान है, उसमें ध्वज ही वृक्ष हैं, पैदल सैनिक घास फूस हैं तथा रथ ही सिंहों के स्थान में हैं। मैं अपने अस्त्र शस्त्र रूपी अग्नि से आज इस कौरव वन को जलाकर भस्म कर दूँगा। ‘जैसे व्याघ्र घोंसले में बैठे हुए पक्षियों को भी मार गिराता है, उसी प्रकार मैं मुड़ी हुई नोक वाले ( तीखे ) बाणों से मारकर उन सभी कौरव वीरों को रथों की बैठकों से नीचे गिरा दूँगा। जैसे वज्रधारी इन्द्र अकेले ही समस्त असुरों का संहार कर डालते हैं, उसी प्रकार मैं भी अकेला ही यहाँ युद्ध के लिये सावधान होकर खड़े हुए सावधान होकर खड़े हुए समसत महाबली योद्धाओं का भली-भाँति विनाश कर डालूँगा। ‘मैंने भगवान् रुद्र से रौद्रास्त्र की वरुण से वारुणास्त्र की शिक्षा प्राप्त की है। इसी प्रकार साक्षात् इन्द्र से मैंने वज्र आदि अस्त्र प्राप्त किये हैं। ‘वीर मानव रूपी सिंहों से सुरक्षित इस भयंकर कौरव वन को मैं अकेला ही उजाड़ डालूँगा, अतः विराट कुमार तुम्हारा भय दूर हो जाना चाहिये’।

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! सव्यसाची अर्जुन के इस प्रकार सान्त्वना देने पर विराट कुमार उत्तर ने भीष्मजी के द्वारा सब ओर से सुरक्षित रथियों की भयंकर सेना में प्रवेश किया। रण भूमि मेें कौरवों को जीतने की इचछा से आते हुए महाबाहु अर्जुन को कठोर कर्म करने वाले गंगा नन्दन भीष्म ने बिना किसी घबराहट के रोक दिया। तब अर्जुन ने उनकी ओर घूमकर सुनहरी धार वाले बाणों से भीष्मजी की ध्वजा को जड़ से काट गिराया, बाणों से छिद जाने के कारण वह ध्वजा पृथ्वी पर गिर पड़ी। इतने ही में विचित्र माला और आभूषणों से विभूषित और अस्त्र संचालन की विद्या में निपुण चार महाबली मनस्वी वीर दुःशासन, विकर्ण, दुःसह और विविंशति वहाँ भयंकर धनुष वाले अर्जुन पर चढ़ आये और वहाँ आकर उन्होंने उग्रधन्वा बीभत्यसु को चारों ओर से घेर लिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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