महाभारत विराट पर्व अध्याय 53 श्लोक 20-25

त्रिपंचाशत्तम (53) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-25 का हिन्दी अनुवाद


उधर अर्जुन उसी प्रकार रथ से दुर्योधन के पास पहुँच गये और उच्च स्वर से अपना नाम सुनाकर बड़ी शीघ्रता से कौरव सेना पर टिड्डी दलों की भाँति असंख्य बाणों की वर्षा करने लगे। अर्जुन के छोड़े हुए बाण समूहों से आच्छादित होकर वे समस्त सैनिक कुछ देख नहीं पाते थे। पृथ्वी और आकाश भी बाणों से ढँक गये थे। युद्ध में बाणों की मार खाकर कौरव सैनिक धराशायी होते जा रहे थे, तो भी उनका मन वहाँ से भागने को नहीं होता था। वे मन ही मन अर्जुन की फुर्ती की सराहना करते थे। तदनन्तर पार्थ ने अपना शंख बजाया, जो शत्रुओं के रोंगटे खड़े कर देने वाला था। फिर उन्होंने अपने श्रेष्ठ धनूष की टंकार करके ध्वज पर बैठे हुए भूतों को सिंहनाद करने की प्रेरणा दी। अर्जुन के शंखनाद, रथ के पहियों की घर्घराहट गाण्डीव धनुष की टंकार तथा ध्वज में निवास करने वाले मानवेत्तर भूतों के कोलाहल से पृथ्वी काँप उठी तथा गौएँ ऊपर को पूँछ उठाकर हिलाती और रम्भाती हुई सब ओर से लौट पड़ीं और दक्षिण दिशा की ओर भाग चलीं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के समय गौओं के लौटने से सम्बन्ध रखने वाला तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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