महाभारत विराट पर्व अध्याय 53 श्लोक 10-19

त्रिपंचाशत्तम (53) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 10-19 का हिन्दी अनुवाद


वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! तपते हुए सूर्य की भाँति देदीप्यमान पाण्डूनन्दन अर्जुन को समीप आते देख शत्रु उनकी ओर दृष्टिपात न कर सके। रथियों की सेना को सामने देखकर कुन्ती कुमार अर्जुन ने सारथि से कहा।

अर्जुन ने कहा - सारथे! धनुष से बाण चलाने पर वह जितनी दूरी पर जाकर गिरता है, कौरव सेना से उतना ही अन्तर रह जाय, तो घोड़ों का रोक लेना; जिससे मैं यह देख लूँ कि इस सेना में वह कुरुकुलाधम दुर्योधन कहाँ है। उस अत्यन्त अभिमानी दुर्योधन को देख लेने पर मैं इन सब योद्धाओं को छोड़कर दसी के सिर पर पडूँगा। उसके पराजित होने से ये सब परास्त हो जायँगे। ये आचार्य द्रोण खड़े हैं। उनके बाद उनके पुत्र अश्वत्थामा हैं। उधर पितामह भीष्म दिखाई देते हैं। इधर कृपाचार्य हैं और वह कर्ण है। ये सब महान् धनुर्धर यहाँ युद्ध के लिये आये हैं। परंतु इनमें मैं राजा दुर्योधन को नहीं देखता हूँ। मुझे संदेह है कि वह दक्षिण दिशा का मार्ग पकड़कर गौओं को साथ ले अपनी जान बचाये भागा जा रहा है। अतः विराट नन्दन! इस रथियों की सेना को छोड़ो और जहाँ दुर्योधन है, वहीं चलो। मैं वहीं युद्ध करूँगा। यहाँ व्यर्थ युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। उसे जीतकर गौओं को अपने साथ ले मैं पुनः लौट जाऊँगा।

वैशम्पायनजी कहते हैं - अर्जुन के इस प्रकार आज्ञा देने पर विराट कुमार उत्तर ने घोड़ज्ञें की रास खींचकर जहाँ बड़े - बड़े कौरव महारथी खड़े थे, उधर जाने से उन्हें रोका। फिर उसने काबू में रखते हुए उन घोड़ों को उसी ओर बढ़ाया, जिधर राजा दुर्योधन गया था। रथियों की सेना छोड़कर श्वेतवाहन अर्जुन जब दूसरी ओ चल दिये, तब उनका अभिप्राय समझकर कृपाचार्य बोले -। ‘ये अर्जुन राजा दुर्योधन के बिना ठहरना नहीं चाहते, इसलिये उधर ही बड़े वेग से जा रहे हैं। अतः हम लोग भी चलकर इनका पीछा करें। ‘इस समय ये बड़े क्रोध में भरे हैं; अतः साक्षात् इन्द्र या देवकी नन्दन श्रीकृष्ण अथवा पुत्र सहित महारथी आचार्य द्रोण के सिवा दूसरा कोई इनके साथ अकेला युद्ध नहीं कर सकता। ‘ ये गौएँ अथवा प्रचुर धन हमें क्या लाभ पहुँचायेंगे? राजा दुर्योधन पाथ रूपी जल में पुरानी नाव की भाँति डूबना चाहता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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