एकोनविंश (19) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व: एकोनविंश अध्यायः श्लोक 32-43 का हिन्दी अनुवाद
भारत! इसी प्रकार तुम्हारे छोटे भाई सहदेव को, जो गौओं का पालक बनाया गया है, जब गौओं के बीच ग्वाले के वेष में आते देखती हूँ, तो मेरा रक्त सूख जाता है और सारा शरीर ढीला पड़ जाता है। भीमसेन! सहदेव की दुर्दशा का बार-बार चिन्तन करने के कारण मुझे कभी नींद तक नहीं आती; फिर सुख कहाँ से मिल सकता है? महाबाहो! जहाँ तक मैं जानती हूँ, सहदेव ने कभी कोई पाप नहीं किया है, जिससे इस सत्यपराक्रमी वीर को ऐसा दुःख उठाना पड़े। भरतश्रेष्ठ! साँड़ के समान हृष्ट-पुष्ट तुम्हारे प्रिय भ्राता सहदेव को राजा विराट के द्वारा गौओं की सेवा में लगाया गया देख मुझे बड़ा दुःख होता है। गेरू आदि से लाल रंग का श्रृंगार धारण किये ग्वालों के अगुआ बने हुए सहदेव को उद्विग्न होने पर भी जब मैं राजा विराट का अभिनन्दन करते देखती हूँ, तब मुझे बुखार चढ़ आता है। वीर! आर्या कुन्ती मुझसे सहदेव की सदा प्रशंसा किया करती थीं कि यह महान् कुल में उत्पन्न, शीलवान् और सदाचारी है। मुझे स्मरण है, जब सहदेव महान् वन में आने लगे, उस समय पुत्रवत्सला माता कुन्ती उन्हें हृदय से लगाकर खड़ी हो गयीं और रोती हुई मुझसे यों कहने लगीं- ‘याज्ञसेनी! सहदेव बड़ा लज्जाशील, मधुरभाषी और धार्मिक है। यह मुझे अत्यन्त प्रिय है। इसे वन में रात्रि के समय तुम स्वयं सँभालकर (हाथ पकड़कर) ले जाना, क्योकि यह सुकुमार है (सम्भव है, थकावट के कारण चल न सके)। मेरा सहदेव शूरवीर, राजा युधिष्ठिर का भक्त, अपने बड़े भाई का पुजारी और वीर है। पांचाल राजकुमारी! तुम इसे अपने हाथों भोजन कराना।' पाण्डुनन्दन! योद्धाओं में श्रेष्ठ उसी सहदेव को जब मैं गौओं की सेवा में तत्पर और बछड़ों के चमड़े पर रात में सोते देखती हूँ, तब किसलिये जीवन धारण करूँ? इसी प्रकार जो सुन्दर रूप, अस्त्रबल और मेधाशक्ति- इन तीनों से सदा सम्पन्न रहता है, वह वीरवर नकुल आज विराट के यहाँ घोड़े बाँधता है। देखो, काल की कैसी विपरीत गति है? जिसे देखकर शत्रुओं के समुदाय बिखर जाते-भाग खड़े होते हैं, वही अब ग्रन्थित बनकर घोड़ों की रास खोलता और बाँधता है तथा महाराज के सामने अश्वों को वेग से चलने की शिक्षा देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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