एकोनविंश (19) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व एकोनविंश अध्यायः श्लोक 44-47 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीनन्दन! शत्रुदमन! क्या तुम समझते हो, यह सब देखकर मैं सुखी हूँ? राजा युधिष्ठिर के कारण ऐसे सैकड़ों दुःख मुझे सदा घेरे रहते हैं। भारत! कुन्तीकुमार! इनमें भी भारी दूसरे दुःख मुझ पर आ पड़े हैं, उनका भी वर्णन करती हूँ, सुनो। तुम सबके जीते-जी नाना प्रकार के कष्ट मेरे शरीर को सुखा रहे हैं, इससे बढ़कर दुःख और क्या हो सकता है?
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी-भीमसेन संवाद विषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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