नवतितम (90) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 23-34 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! पूर्वकाल से ही विशाला बदरी के समीप गंगा कहीं गर्म जल तथा कहीं शीतल जल प्रवाहित करती है। उनकी बालू सुवर्ण की भाँति चमकती है। वहाँ महाभाग एवं महातेजस्वी देवता तथा महर्षि प्रतिदिन जाकर अमित प्रभावशाली भगवान् नारायण को नमस्कार करते हैं। जहाँ सनातन परमात्मा भगवान् नारायण विराजमान हैं, वहाँ सम्पूर्ण जगत् है और समस्त तीर्थ तथा देवालय हैं। वह बदरिकाश्रम पुण्यक्षेत्र और परब्रह्मस्वरूप है। वही तीर्थ है, वही तपोवन है, वही सम्पूर्ण भूतों का परमदेव परमेश्वर है। वही सनातन परमधाता एवं परमपद है, जिसे जान लेने पर शास्त्रदर्शी विद्वान् कभी शोक नहीं करते हैं। वहीं देवर्षि सिद्ध और समस्त तपोधन महात्मा निवास करते हैं। जहाँ महायोगी आदिदेव भगवान् मधुसूदन विराजमान हैं, वह स्थान पुण्यों का भी पुण्य है। इस विषय में तुम्हें संशय नहीं होना चाहिये। राजन्! पृथ्वीपते! नरश्रेष्ठ! ये भूमण्डल के पुण्यतीर्थ और आश्रम आदि कहे गये वसु, साध्य, आदित्य, मरुद्गण, अश्विनीकुमार तथा देवोपम महात्मा मुनि इन सब तीर्थों का सेवन करते हैं। कुन्तीनन्दन! तुम श्रेष्ठ ब्राह्मणों और महान् सौभाग्यशाली भाइयों के साथ इन तीर्थों में विचरते रहोगे तो अर्जुन के लिये तुम्हारे मिलने की उत्कृष्ट इच्छा अर्थात् विरहव्याकुलता शांत हो जायेगी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में धौम्यतीर्थयात्रा विषयक नब्बेवां अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|