महाभारत वन पर्व अध्याय 53 श्लोक 19-32

त्रिपंचाशत्तम (53) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-32 का हिन्दी अनुवाद


इतने ही में उनकी दृष्टि कुछ हंसों पर पड़ी, जो सुवर्णमय पंखों से विभूषित थे। वे उसी उपवन में विचर रह थे। राजा ने उनमें से एक हंस को पकड़ लिया। तब आकाशचारी हंस ने उस समय नल से कहा- 'राजन्! आप मुझे न मारें। मैं आपका प्रिय कार्य करूंगा। निषधनरेश! मैं दमयन्ती के निकट आपकी ऐसी प्रशंसा करूंगा, जिससे वह आपके सिवा दूसरे किसी पुरुष को मन में कभी स्थान न देगी’।

हंस के ऐसा कहने पर राजा नल ने उसे छोड़ दिया। फिर वे हंस वहाँ से उड़कर विदर्भ देश में गये। तब विदर्भ नगरी में जाकर वे सभी हंस दमयन्ती के निकट उतरे। दमयन्ती ने भी उन अद्भुत पक्षियों को देखा। सखियों से घिरी हुई राजकुमारी दमयन्ती उन अपूर्व पक्षियों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और तुरन्त ही उन्हें पकड़ने की चेष्टा करने लगी। तब हंस उस प्रमदावन में सब ओर विचरण करने लगे। उस समय सभी राजकन्याओं ने एक-एक करके उन सभी हंसों का पीछा किया।

दमयन्ती जिस हंस के निकट दौड़ रही थी, उसने उससे मानवी वाणी में कहा- ‘राजकुमारी दमयन्ती! सुनो, निषध देश में नल नाम से प्रसिद्ध एक राजा हैं, जो अश्विनीकुमारों के समान सुन्दर हैं। मनुष्यों में तो कोई उनके समान है ही नहीं। सुन्दरी! रूप दृष्टि से तो वे मानों स्वयं मूर्तिमान् कामदेव से ही प्रतीत होते हैं। सुमध्यमे! यदि तुम उनकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और यह मनोहर रूप सफल हो जाये। हम लोगों ने देवता, गन्धर्व, मनुष्य, नाग तथा राक्षसों को भी देखा है; परन्तु हमारी दृष्टि में अब तक उनके जैसा कोई भी पुरुष पहले कभी नहीं आया है। तुम रमणियों में रत्नस्वरूपा हो और नल पुरुषों के मुकुटमणि हैं। यदि किसी विशिष्ट नारी का विशिष्ट पुरुष के साथ संयोग हो तो वह विशेष गुणकारी होता है।'

राजन्! हंस के इस प्रकार कहने पर दमयन्ती ने उससे कहा- ‘पक्षिराज! तुम नल के निकट भी ऐसी ही बात कहना’।

राजन्! विदर्भ राजकुमारी दमयन्ती से ‘तथास्तु’ कहकर वह हंस पुनः निषध देश में आया और उसने नल से सब बातें निवेदन कीं।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में हंस-दमयन्ती संवाद विषयक तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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