नवतितम (90) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 59-79 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! वह नयी जवानी प्राप्त कर लेता था; क्योंकि राक्षसों में माया का बल स्वाभाविक होता है और वे इच्छानुसार रूप तथा अवस्था धारण कर लेते हैं। इस प्रकार उस राक्षस का जो जो अंग कटता, वह पुनः नये सिरे से उत्पन्न हो जाता था। इरावान भी अत्यन्त कुपित होकर उस महाबली राक्षस को बार बार तीखे फरसे से काटने लगा। बलवान इरावान् के फरसे से छिन्न-भिन्न हुआ वह वीर राक्षस घोर आर्तनाद करने लगा। उसका वह शब्द बड़ा भयंकर प्रतीत होता था। फरसे से बार बार छिदने के कारण राक्षस के शरीर से बहुत सा रक्त बह गया। इससे राक्षस ऋृष्यश्रृंग के बलवान पुत्र अलम्बुष ने समरभूमि में अत्यन्त क्रोध और वेग प्रकट किया। उसने युद्धस्थल में अपने शत्रु को प्रबल हुआ देख अत्यन्त भयंकर एवं विशाल रूप धारण करके अर्जुन के वीर एवं यशस्वी पुत्र इरावान को कैद करने का प्रयत्न आरम्भ किया। युद्ध के मुहाने पर समस्त योद्धाओं के देखते-देखते वह इरावान को पकड़ना चाहता था। उस दुरात्मा राक्षस की वैसी माया देखकर क्रोध में भरे हुए इरावान ने भी माया का प्रयोग आरम्भ किया। संग्राम में पीठ न दिखाने वाला इरावान जब क्रोध में भरकर युद्ध कर रहा था, उसी समय उसके मातृकुल के नागों का समुदाय उसकी सहायता के लिये वहाँ आ पहुँचा। राजन्! रणभूमि में बहुतेरे नागों से घिरे हुए इरावान ने विशाल शरीर वाले शेषनाग की भाँति बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया। तदनन्तर उसने बहुत से नागों द्वारा राक्षस को आच्छादित कर दिया। नागों द्वारा आच्छादित होने पर उस राक्षस राज ने कुछ सोच-विचार कर गरुड़ का रूप धारण कर लिया और समस्त नागों को भक्षण करना आरम्भ किया। जब उस राक्षस ने इरावान् के मातृकुल के सब नागों को भक्षण कर लिया, तब मोहित हुए इरावान् को तलवार से मार डाला। इरावान् के कमल और चन्द्रमा के समान कान्तिमान तथा कुण्डल एवं मुकुट से मण्डित मस्तक को काट कर राक्षस ने धरती पर गिरा दिया। इस प्रकार राक्षस द्वारा अर्जुन के वीर पुत्र इरावान के मारे जाने पर राज दुर्योधन सहित आपके सभी पुत्र शोक रहित हो गये। फिर तो उस भयंकर एवं महान संग्राम में दोनों सेनाओं का अत्यन्त भयंकर सम्मिश्रण हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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