नवतितम (90) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 20-41 का हिन्दी अनुवाद
महाबाहो! उस समय उन युद्धदुर्मद गान्धारदेशीय वीरों ने विजय अथवा स्वर्ग की अभिलाषा लेकर विशाल सेना के साथ पाण्डव-वाहिनी के परम दुर्जयव्यूह का भेदन करके हर्ष और उत्साह से परिपूर्ण हो उसके भीतर प्रवेश किया। तब उन्हें सेना के भीतर प्रविष्ट हुआ देख पराक्रमी इरावान ने भी समरभूमि में भयंकर अस्त्र-शस्त्र वाले अपने विचित्र योद्धाओं से कहा- 'वीरों! तुम सब लोग संग्राम में ऐसी नीति बना लो, जिससे दुर्योधन के ये समस्त योद्धा अपने सेवकों और सवारियों सहित मार डाले जाये। तब बहुत अच्छा ऐसा कहकर इरावान के समस्त सैनिकों ने उन छहों वीरों के सैन्य समूह को, जो समरांगण में दूसरों के लिये दुर्जय था, मार डाला। अपनी सेना को समरभूमि में शत्रु की सेना द्वारा मार गिरायी गई देख सुबल के सभी पुत्र इसे सह न सके। उन्होंने इरावान पर धावा करके उसे सब ओर से घेर लिया। वे छहों शूर तीखे प्रासों से मारते और एक दूसरे को बढ़ावा देते हुए इरावान पर टूट पड़े तथा उसे अत्यन्त व्याकुल करने लगे। उन महामनस्वी वीरों के तीखे प्रासो से क्षत-विक्षत होकर इरावान बहते हुए रक्त से नहा उठा। अंगों से घायल हुए हाथी के समान व्याकुल हो गया। राजन्! वह अकेला था और उस पर प्रहार करने वालों की संख्या बहुत थी। वह आगे-पीछे और अगल-बगल में अत्यन्त घायल हो गया था; तो भी धैर्य के कारण व्यथित नहीं हुआ। अब इरावान को भी बड़ा क्रोध हुआ। शत्रु नगरी पर विजय पाने वाले उस वीर ने समर में तीखे बाणों द्वारा बींधकर उन सबको मूर्च्छित कर दिया। शत्रुओं का दमन करने वाले इरावान अपने शरीर से वेगपूर्वक प्रासों को निकालकर उन्हीं के द्वारा रणभूमि में सुबल पुत्रों पर प्रहार किया। तत्पश्चात् तीखी तलवार और ढाल निकालकर इरावान ने युद्ध में सुबल पुत्रों को मार डालने की इच्छा से तुरंत उनके ऊपर पैदल ही धावा किया। तदनन्तर सुबलपुत्रों में प्राण शक्ति पुनः लौट आयी। अतः वे सब के सब सचेत होने पर पुनः क्रोध में भर गये और इरावान पर दौड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज