एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 21-34 का हिन्दी अनुवाद
आर्य! तदनन्तर द्रोणाचार्य, भीष्म तथा शल्य तीनों ने कुपित होकर भीमसेन को युद्धस्थल में अपने बाणों से ढक दिया। महाराज! तब वहाँ क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्रों ने आयुध लेकर खड़े हुए उन सब कौरव महारथियों को तीखे बाणों से घायल कर दिया। उस समय कुपित होकर आक्रमण करते हुए महाबली द्रोणाचार्य और भीष्म का उस महासमर में सामना करने के लिए महाधनुर्धर शिखण्डी आगे बढ़ा। उस वीर ने मेघ के समान गंभीर घोष करने वाले अपने धुनष को बलपूर्वक खींचकर बड़ी शीघ्रता के साथ इतने बाणों की वर्षा की कि सूर्य भी आच्छादित हो गये। भरतकुल के पितामह भीष्म ने शिखण्डी के सामने पहुँचकर उसके स्त्रीत्व का बार-बार स्मरण करते हुए युद्ध बंद कर दिया। महाराज! यह देखकर द्रोणाचार्य ने युद्ध में आपके पुत्र के कहने से भीष्म की रक्षा के लिए शिखण्डी की ओर दौड़े। शिखण्डी प्रलयकाल की प्रचण्ड अग्नि के समान शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ द्रोण का सामना पड़ने पर भयभीत हो युद्ध छोड़कर चल दिया। प्रजानाथ! तदनन्तर आपका पुत्र दुर्योधन महान् यश पाने की इच्छा रखता हुआ अपनी विशाल सेना के साथ भीष्म के पास पहुँचकर उनकी रक्षा करने लगा। राजन् इसी प्रकार पाण्डव भी विजय प्राप्ति के लिये दृढ़ निश्चय करके अर्जुन को आगे कर भीष्म पर ही टूट पड़े। उस युद्ध में विजय तथा अत्यन्त अद्भुत यश की अभिलाषा रखने वाले पाण्डवों का कौरवों के साथ उसी प्रकार भयंकर युद्ध हुआ, जैसे देवताओं का दानवों के साथ हुआ था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में पाँचवें दिवस के युद्ध का आरम्भविषयक उनहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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