महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 45 श्लोक 46-68

पंचत्वारिंश (45) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: पंचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 46-68 का हिन्दी अनुवाद


राजन्! बलवान शिखण्डी ने रणक्षेत्र में द्रोणपुत्र अश्वत्थामा पर धावा किया। तब अश्वत्थामा ने कुपित हो एक तीखे नाराच के द्वारा निकट आये हुए शिखण्डी को अत्यन्त घायल करके कम्पित कर दिया। महाराज! तब शिखण्डी ने भी पीले रंग के तेज धार वाले तीखे सायक से द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को गहरी चोट पहुँचायी तदनन्तर वे दोनों अनेक प्रकार के बाणों द्वारा एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। राजन्! संग्रामशुर भगवत्त पर सेनापति ने विराट ने बड़ी उतावली के साथ आक्रमण किया। फिर तो उन दोनों में युद्ध होने लगा। विराट ने अत्यन्त कुपित होकर भगदत्त पर अपने बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेघ पर्वत पर जल की बूंदे बरसा रहा हो। तब जैसे बादल आगे हुए सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार भगदत्त ने समरभूमि में बाणों को वर्षा द्वारा पृथ्वीपति विराट को आच्छादित कर दिया। भरतनन्दन! केकयराज बृहत्क्षत्र पर शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने आक्रमण किया और अपने बाणों की वर्षा द्वारा उन्हें ढक दिया। तब केकयराज ने भी क्रुद्ध होकर अपने सायकों की वर्षा से कृपाचार्य को आच्छादित कर दिया।

भारत! वे दोनों वीर एक दूसरे के घोड़ों को मारकर धनुष के टुकडे़ करके रथहीन हो अमर्ष में भरकर खड्ग द्वारा युद्ध करने के लिये आमने-सामने खडे़ हुए। फिर तो उन दोनों में अत्यन्त भयंकर एवं दारुण युद्ध होने लगा। राजन्! दूसरी और शत्रुओं को संताप देने वाले द्रुपद ने बड़े हर्ष के साथ सिन्धुराज जयद्रथ पर धावा किया। जयद्रथ भी बहुत प्रसन्न था। तत्पश्चात् सिन्धुराज जयद्रथ ने समरागण में तीन बाणों द्वारा द्रुपद को गहरी चोट पहुँचायी। द्रुपद ने भी बदले में उसे बींध डाला। उन दोनों का यह घोर एवं अत्यन्त भयंकर युद्ध शुक्र और मंगल के संघर्ष की भाँति नेत्रों के लिये हर्ष उत्पन्न करने वाला था। आपके पुत्र विकर्ण ने तेज चलने वाले घोड़ों द्वारा महाबली सुतसोम पर धावा किया। तत्पश्चात् उनमें भारी युद्ध होने लगा। विकर्ण अपने बाणों से सुतसोम को घायल करके भी उन्‍हें कम्पित न कर सका। इसी प्रकार सुतसोम भी विकर्ण को विचलित न कर सके। उन दोनों का यह पराक्रम अद्भुत-सा प्रतीत हुआ। नरश्रेष्ठ पराक्रमी महारथी चेकितान ने पाण्डवों के लिये अत्यन्त कुपित होकर सुशर्मा पर धावा किया।

महाराज! सुशर्मा ने भारी बाण-वर्षा के द्वारा महारथी चेकितान को युद्ध में आगे बढ़ने से रोक दिया। तब चेकितान ने भी रोष में भरकर उस महायुद्ध में अपने बाणों की वर्षा से सुशर्मा को उसी प्रकार ढक दिया, जैसे महामेघ जल की वर्षा से पर्वत को आच्छादित कर देता है। राजेन्द्र! पराक्रमी शकुनि पराक्रम सम्पन्न प्रतिविन्ध्य पर चढ़ गया, ठीक उसी तरह जैसे मतवाला सिंह किसी हाथी पर आक्रमण करता है। जिस प्रकार इन्द्र संग्रामभूमि में किसी दानव को विदीर्ण करते हैं उसी प्रकार युधिष्ठिर के पुत्र प्रतिविन्ध्य ने अत्यन्त कुपित होकर सुबलपुत्र शकुनि को अपने तीखे बाणों से बेध डाला। युद्ध में अपने को बेधने वाले प्रतिविन्ध को भी परम बुद्धिमान शकुनि ने झुके हुए गाँठवाले बाणों से घायल कर दिया। राजेन्द्र! काम्बोज देश के राजा पराक्रमी महारथी सुदक्षिण पर रणभूमि में श्रुतकर्मा ने आक्रमण किया। तब सुदक्षिण ने समरांगण में सहदेव-पुत्र महारथी श्रुतकर्मा को क्षत-विक्षत कर दिया तो भी वह उन्‍हें कम्पित न कर सका। वे मैनाक पर्वत की भाँति अविचल भाव से खडे़ रहे। तदनन्तर श्रुतकर्मा ने कुपित होकर महारथी काम्बोजराज को सब ओर से विदीर्ण-सा करते हुए अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा भलीभाँति पीड़ित किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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