षडधिकशततम (106) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद
पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर दूसरे सैनिक कवच उताकर केश बिखेरे हुए सब और भागते दिखायी देते थे। उस समय पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर की सारी सेना (सिंह से डरी हुई) गौओं के समुदाय की भाँति घबराहट में पड़ गयी थीं। रथ के कूबर उलट-पलट हो गये थे और समस्त सैनिक आर्तनाद कर रहे थे। उस सेना में भगदड़ पड़ी देख यादवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उत्तम रथ को रोककर कुन्तीकुमार अर्जुन से कहा- 'पार्थ! तुम्हें जिस अवसर की अभिलाषा और प्रतीक्षा थी, वह आ पहुँचा। पुरुषसिंह! यदि तुम मोह से मोहित नहीं हो रहे हो तो इन भीष्म पर प्रहार करो। वीर! तात! पूर्वकाल में विराट नगर के भीतर जब सम्पूर्ण राजा एकत्र हुए थे, उनके सामने और संजय के समीप जो तुमने यह कहा था कि मैं युद्ध में, जो मेरा सामना करने आयेंगे, दुर्योधन के उन भीष्म, द्रोण आदि सम्पूर्ण सैनिकों को सगे सम्बधियों सहित मार डालूँगा। शत्रुदमन कुन्तीनन्दन! अपने उस कथन को सत्य कर दिखाओ। तुम क्षत्रिय धर्म का स्मरण करके सारी चिन्ताएँ छोड़कर युद्ध करो।' भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन ने मुँह नीचे किये तिरछी दृष्टि से देखते हुए अनिच्छुक की भाँति उनसे इस प्रकार कहा- 'प्रभो! अवध्य महापुरुषों का वध करके नरक से भी बढ़कर निन्दनीय राज्य प्राप्त करूँ अथवा वनवास में रहकर कष्ट भोगूँ- इन दोनों में कौन मेरे लिये पुण्यदायक होगा। अच्छा, जहाँ भीष्म हैं, उसी ओर घोड़ों को बढ़ाइये। आज मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा। कुरुकुल के वृद्ध पितामह दुर्धर्ष वीर भीष्म को मार गिराऊँगा।' राजन! तब भगवान श्रीकृष्ण ने चाँदी के समान श्वेत वर्ण वाले घोड़ों को उसी ओर हाँका, जहाँ अंशुमाली सूर्य के समान दुर्निरीक्ष्य भीष्म युद्ध कर रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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