महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 99 श्लोक 18-37

नवनवतितम (99) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 18-37 का हिन्दी अनुवाद

उन दोनों ने अर्जुन को चौसठ और श्रीकृष्‍ण को सत्‍तर बाण मारे तथा उनके घोड़ों को सौ बाणों से घायल कर दिया। ऐसा करके उन्‍हें बड़ी प्रसन्‍नता हुई। महाराज! मर्म को जानने वाले अर्जुन ने रणक्षेत्र में कुपित होकर झुकी हुई गांठ वाले नौ मर्म भेदी बाणों द्वारा उन दोनों को चोट पहुँचायी। तब उन दोनों भाइयों ने कुपित हो श्रीकृष्‍ण सहित अर्जुन को अपने बाण समुहों से आच्‍छादित कर दिया और बड़े जोर से सिंहनाद किया। तदनन्‍तर श्‍वेत घोडो़ं वाले अर्जुन ने समरागंण में दो बाणों द्वारा उनके दोनों विचित्र धनुषों और सुवर्ण के समान प्रकाशित होने वाले दोनों ध्‍वजों को भी तुरंत ही काट डाला। राजन! फिर वे दोनों भाई अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे और उस समय समरागंण में दूसरे धनुष लेकर उन्‍होंने बाणों द्वारा पाण्‍डुकुमार अर्जुन को गहरी पीड़ा दी। यह देख पाण्‍डुनन्‍दन धनंजय अत्‍यन्‍त क्रोध से जल उठे और दो बाण मारकर तुरंत ही उन्‍होंने उन दोनों के धनुष पुन: काट डाले।

फिर सुवर्णमय पंखों वाले और शानदार चढ़ाकर तेज किये हुए दूसरे बाणों द्वारा उनके घोड़ों को एवं दोनों सारथियों, पार्श्व रक्षकों तथा पदानुगामी सेवकों को भी शीघ्र ही मार डाला। इसके बाद एक क्षुरप्र द्वारा बड़े भाई विन्‍द का मस्‍तक धड़ से काट दिया। विन्‍द आंधी के उखाडे़ हुए वृक्ष के समान मरकर पृथ्‍वी पर गिेर पड़ा। विन्‍द को मारा गया देख महाबली और प्रतापी अनुविन्‍द अपने भाई के वध का बारंबार चिन्‍तन करता हुआ अश्वहीन रथ को त्‍यागकर हाथ में गदा ले संग्राम भूमि में डटा रहा। रथियों में श्रेष्‍ठ महारथी अनुविन्‍द ने कुपित हो नृत्‍य सा करते हुए गदा द्वारा मधुसूदन भगवान श्रीकृष्‍ण के ललाट में आघात किया; परंतु मैनाक पर्वत के समान श्रीकृष्‍ण को कम्पित न कर सका। तब अर्जुन ने छ: बाणों द्वारा उसकी गर्दन, दोनों पैरों दोनों भुजाओं तथा मस्‍तक को काट डाला। इस प्रकार छिन्‍न–भिन्‍न होकर वह पर्वत समूह के समान धराशायी हो गया। राजन! तब उन दोनों भाइयों को मारा गया देख उनके सेवकगण अत्‍यन्‍त कुपित हो अर्जुन पर सैकड़ों बाणों की वर्षा करते हुए टूट पड़े। भरतश्रेष्‍ठ! अर्जुन बाणों द्वारा तुरंत ही उन सबका संहार करके ग्रीष्‍म ऋृतु में वन को जलाकर प्रकाशित होने वाले अग्नि देव के समान सुशोभित हुए। उन दोनों सेना का बड़ी कठिनाई से उल्लघंन करके अर्जुन मेघों का आवरण भेदकर उदित हुए सूर्य के समान प्रकाशित होने लगे।

उन्‍हें देखकर कौरव सैनिक पहले तो भयभीत हुए। फिर प्रसन्‍न भी हो गये। वे चारों ओर से कुन्‍तीकुमार का सामना करने के लिये डट गये। अर्जुन को थका हुआ देख और सिन्‍धुराज जयद्रथ को उनसे बहुत दूर जानकर आप के सैनिकों ने महान सिंहनाद करते हुए उन्‍हें सब ओर से घेर लिया। उन सबको क्रोध में भरा देख पुरुष शिरोमणि अर्जुन ने मुसकराते हुए धीरे-धीरे भगवान श्रीकृष्‍ण से कहा। ‘मेरे घोडे़ बाणों से पीड़ित हो बहुत थक गये है और सिन्‍धुराज जयद्रथ अभी बहुत दूर है। अत: इस समय यहाँ कौन सा कार्य आपको श्रेष्‍ठ जान पड़ता है। ‘श्रीकृष्‍ण! आप ही सदा सर्वश्रेष्‍ठ ज्ञानी हैं। अत: मुझे यथार्थ बात बताइये। आपको नायक बनाकर ही पाण्‍डव इस रणक्षेत्र में शत्रुओं पर विजयी होंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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