महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 87 श्लोक 16-35

सप्ताशीतितम (87) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व:सप्ताशीतितम अध्याय: श्लोक 16-35 का हिन्दी अनुवाद
  • उनके ऐसा कहने पर सिधुंराज जयद्रथ को बड़ा आश्वासन मिला। वह गान्धार महारथियों से घिरा हुआ युद्ध के लिये चल दिया। कवचधारी घुड़सवार हाथों में प्रास लिये पूरी सावधानी के साथ उन्हें घेरे हुए चल रहे थे। (16)
  • राजेन्द्र! जयद्रथ के घोडे़ सवारी में बहुत अच्छा काम देते थे। वे सब-के-सब चँवर की कलँगी से सुशोभित और सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित थे। उन सिंधुदेशीय अश्वों की संख्या दस हजार थी। (17-18)
  • जिन पर युद्ध कुशल हाथीसवार आरूढ़ थे, ऐसे भयंकर रूप तथा पराक्रम वाले डेढ़ हजार कवचधारी मतवाले गजराजों के साथ आकर आपका पुत्र दुर्मर्षण युद्ध के लिये उद्यत हो सम्पूर्ण सेनाओं के आगे खड़ा हुआ। (19-20)
  • तत्पश्चात आपके दो पुत्र दुःशासन और विकर्ण सिन्धुराज जयद्रथ के अभीष्‍ट अर्थ की सिद्धि के लिये सेना के अग्रभाग में खड़े हुए। (21)
  • आचार्य द्रोण ने चक्रगर्भ शकट-व्यूह का निर्माण किया था, जिसकी लम्बाई बारह गव्यूति[1] थी और पिछले भाग की चैड़ाई पाँच गव्यूति[2] थी। (22)
  • यत्र-तत्र खड़े हुए अनेक नरपतियों तथा हाथीसवार, घुड़सवार, रथी और पैदल सैनिकों द्वारा द्रोणाचार्य ने स्वयं उस व्यूह की रचना की थी। (23)
  • उस चक्रशकटव्यूह के पिछले भाग में पद्मनामक एक गर्भव्यूह बनाया था, जो अत्यन्त दुर्भेद्य था। उस पद्यव्यूह के मध्यभाग में सूची नामक एक गूढ़ व्यूह और बनाया गया था। (24)
  • इस प्रकार इस महाव्यूह की रचना करके द्रोणाचार्य युद्ध के लिये तैयार खड़े थे। सूचीमुख व्यूह के प्रमुख भाग में महाधनुर्धर कृतवर्मा को खड़ा किया गया था। (25)
  • आर्य! कृतवर्मा के पीछे काम्बोजराज और जलसंध खड़े हुए, तदनन्तर दुर्योधन और कर्ण स्थित हुए। (26))
  • तत्पश्चात युद्ध में पीठ न दिखाने वाले एक लाख योद्धा खड़े हुए थे। वे सब-के-सब शकटव्यूह के प्रमुख भाग की रक्षा के लिये नियुक्त थे। (27)
  • उनके पीछे विशाल सेना के साथ स्वयं राजा जयद्रथ सूचीव्यूह के पार्श्वभाग में खड़ा था। (28)
  • राजेन्द्र! उस शकटव्यूह के मुहाने पर भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य थे और उनके पीछे भोज था, जो स्वयं आचार्य की रक्षा करता था। (29)
  • द्रोणाचार्य का कवच श्‍वेत रंग का था। उनके वस्त्र और उष्‍णीष (पगड़ी) भी श्‍वेत ही थे। छाती चौड़ी और भुजाएँ विशाल थी। उस समय धनुष खींचते हुए द्रोणाचार्य वहाँ क्रोध में भरे हुए यमराज के समान खड़े थे। (30)
  • उस समय वेदी और काले मृगचर्म के चिह्न से युक्त ध्वज वाले, पताका से सुशोभित और लाल घोड़ों से जुते हुए द्रोणाचार्य के रथ को देखकर समस्त कौरव बड़े प्रसन्न हुए। (31)
  • द्रोणचार्य द्वारा रचित वह महाव्यूह महासागर के समान जान पड़ता था। उसे देखकर सिद्धों और चारणों के समुदायों को महान विस्मय हुआ। (32)
  • उस समय प्राणी ऐसा मानने लगे कि वह व्यूह पर्वत, समुद्र और काननों सहित अनेकानेक जनपदों से भरी हुई इस सारी पृथ्वी को अपना ग्रास बना लेगा। (33)
  • बहुत-से रथ, पैदल मनुष्‍य, घोड़े और हथियों से परिपूर्ण, भयंकर कोलाहल से युक्त एवं शत्रुओं के हृदय को विदीर्ण करने में समर्थ, अद्भुत और समय के अनुरूप बने हुए उस महान शकटव्यूह को देखकर राजा दुर्योधन बहुत प्रसत्र हुआ। (34)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथवधपर्व में कौरव-सेना के व्यूह का निर्माण्विषयक सतासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चौबीस कोस
  2. दस कोस

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