महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 114-125

एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम (139) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 114-125 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन ने कर्ण के धनुष को तो पहले से ही तोड़ दिया था। इसलिये वह धनंजय के बाणों से घायल हो भीमसेन को छोड़कर अपने विशाल रथ द्वारा तुरंत ही वहाँ से दूर हट गया। इधर नरश्रेष्ठ भीमसेन भी सात्यकि के रथ पर आरूढ़ हो युद्ध स्थल में सव्यसाची पाडु पुत्र भाई अर्जुन के पास जा पहुँचे। तत्पश्चात क्रोध से लाल आँखें किये अर्जुन ने बड़ी उतावली के साथ कर्ण को लक्ष्य करके एक नाराच चलाया, मानो यमराज ने किसी के लिये मौत भेज दी हो। गाण्डीव धनुष से छूटा हुआ यह नाराच आकाश मार्ग से तुरंत ही कर्ण की ओर चला, मानो गरुड़ किसी उत्तम सर्प को पकड़ने के लिये जा रहे हों। उस समय अर्जुन के भय से कर्ण का उद्धार करने की इच्छा रखकर महारथी अश्वत्थामा ने अपने बाण से उस नाराच को आकाश में ही नष्ट कर दिया। महाराज! तब क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने अश्वत्थामा को चौसठ बाण मारे और कहा - ‘खड़े रहो, भागना मत’। परंतु अर्जुन के बाणों से पीड़ित हो अश्वत्थामा तुरंत ही रथ से व्याप्त एवं मतवाले हाथियों से भरे हुए व्यूह के भीतर घुस गया।

तब बलवान कुन्ती कुमार अर्जुन ने रणक्षेत्र में टंकार करते हुए सुवर्णमय पृष्ठ वाले समस्त धनुषों के सम्मिलित शब्दों को अपने गाण्डीव धनुष के गम्भीर घोष से दबा दिया। अर्जुन भागते हुए अश्वत्थामा के पीछे पीछे अपने बाणों द्वारा कौरव सेना को संत्रस्त करते हुए कुछ दूर तक गये। उस समय उन्होंने कंक और मोर की पाँखें से युक्त नाराचों द्वारा घोड़ों, हाथियों और मनुष्यों के शरीरों को विदीर्ण करके सारी सेना को तहस नहस कर दिया। भरतश्रेष्ठ! उस समय सावधान हुए इन्द्र कुमार, कुन्ती पुत्र अर्जुन ने हाथी, घोड़ों और मनुष्यों से भरी हुई उस सेना का संहार कर डाला।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथ वध पर्व में भीमसेन और कर्ण का युद्ध विषयक एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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