महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 41 श्लोक 59-77

एकचत्वारिंश (41) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 59-77 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा कहकर अत्यन्त थका-मांदा कौआ दोनों पँखों और चोंच से जल का स्पर्श करता हुआ सहसा उस महासागर में गिर पड़ा। उस समय उसे बड़ी पीड़ा हो रही थी। समुद्र के जल में गिरकर अत्यन्त दीनचित्त हो मृत्यु के निकट पहुँचे हुए उस कौए से हंस ने इस प्रकार कहा-। काग! तूने अपनी प्रशंसा करते हुए कहा था कि मैं एक सौ एक उड़ानों द्वारा उड़ सकता हूँ। अब उन्हें याद कर। सौ उड़ानों से उड़ने वाला तू तो मुझसे बहुत बढ़ा-चढ़ा है। फिर इस प्रकार थककर महासागर में कैसे गिर पड़ा? तब जल में अत्यन्त कष्ट पाते हुए कौए ने जल के ऊपर ठहरे हुए हंस की ओर देखकर उसे प्रसन्न करने के लिये कहा। कौआ बोला- 'भाई हंस! मैं जूठन खा-खाकर घमंड में भर गया था और बहुत से कौओं तथा दूसरे पक्षियों का तिरस्कार करके अपने आप को गरुड़ के समान शक्तिशाली समझने लगा। हंस! अब मैं अपने प्राणों के साथ तुम्हारी शरण में आया हूँ। मुझे द्वीप के पास पहुँचा दो। शक्तिशाली हंस! यदि मैं कुशलपूर्वक अपने देश में पहुँच जाऊँ तो अब कभी किसी का अपमान नहीं करूँगा। तुम इस विपत्ति से मेरा उद्धार करो'। कर्ण! इस प्रकार कहकर कौआ अचेत सा होकर दीन-भाव से विलाप करने और काँव-काँव करते हुए महासागर के जल में डूबने लगा। उस समय उसकी ओर देखना कठिन हो रहा था। वह पसीने से भीग गया था।

हंस ने कृपापूर्वक उसे पंजों से उठाकर बड़े वेग से ऊपर उछाला और धीरे से अपनी पीठ पर चढ़ा लिया। अचेत हुए कौए को पीठ पर बिठाकर हंस तुरंत ही फिर उसी द्वीप में आ पहुँचा, जहाँ से होड़ लगाकर दोनों उड़े थे। उस कौए को उसके स्थान पर रखकर उसे आश्वास देकर मन के समान शीघ्रगामी हंस पुनः अपने अभीष्ट देश को चला गया। कर्ण! इस प्रकार जूठन खाकर पुष्ट हुआ कौआ उस हंस से पराजित हो अपने महान बल-पराक्रम का घमंड छोड़कर शांत हो गया। पूर्व काल में वह कौआ जैसे वैश्यकुल में सबकी जूठन खाकर पला था, उसी प्रकार धृतराष्ट्र के पुत्रों ने तुम्हें जूठन खिला-खिलाकर पाला है, इसमें संशय नहीं है। कर्ण! इसी से तुम अपने समान तथा अपने से श्रेष्ठ पुरुषों का भी अपमान करते हो।

विराट नगर में तो द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, भीष्म तथा अन्य कौरव वीर भी तुम्हारी रक्षा कर रहे थे। फिर उस समय तुमने अकेले सामने आये हुए अर्जुन का वध क्यों नहीं कर डाला? वहाँ तो किरीटधारी अर्जुन ने अलग-अलग और सब लोगों से एक साथ लड़कर भी तुम लोगों को उसी प्रकार परास्त कर दिया था, जैसे एक ही सिंह ने बहुत से सियारों को मार भगाया हो। कर्ण! उस समय तुम्हारा पराक्रम कहाँ था? सव्यसाची अर्जुन के द्वारा समरांगण में अपने भाई को मारा गया देखकर कौरव वीरों के समक्ष सबसे पहले तुम्हीं भागे थे। कर्ण! इसी प्रकार जब द्वैतवन में गन्धर्वों ने आक्रमण किया था, उस समय समस्त कौरवों को छोड़कर पहले तुमने ही पीठ दिखाई थी। कर्ण! वहाँ कुन्तीकुमार अर्जुन ने ही रणभूमि में चित्रसेन आदि गन्धर्वों को मार-पीटकर उन पर विजय पायी थी और स्त्रियों सहित दुर्योधन को उनकी कैद से छुड़ाया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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