महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 156 श्लोक 24-36

षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-36 का हिन्दी अनुवाद
  • पृथ्वीपते! या तो पहले कर्ण ही युद्ध कर ले या मैं ही युद्ध करूँ; क्‍योंकि यह सूतपुत्र सदा युद्ध में मुझसे अत्‍यन्‍त स्‍पर्धा रखता है। (24)
  • कर्ण बोला- राजन! मैं गंगानन्‍दन भीष्‍म के जीते-जी किसी प्रकार युद्ध नहीं करूंगा। इनके मारे जाने पर ही गाण्‍डीवधारी अर्जुन के साथ लडूँगा। (25)
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर धृतराष्‍ट्र के पुत्र दुर्योधन ने प्रचुर दक्षिणा देने वाले भीष्‍मजी का प्रधान सेनापति के पद पर विधिपूर्वक अभिषेक किया। अभिषेक हो जाने पर उनकी बड़ी शोभा हुई। (26)
  • उस समय वीरों के सिंहनाद तथा वाहनों के नाना प्रकार के शब्‍द सब ओर गूँज उठे। बिना बादल के ही आकाश से रक्‍त की वर्षा होने लगी, जिसकी कीच जम गयी (28)
  • हाथियों के चिंघाड़ने के साथ ही बिजली की गड़गड़ाहट के समान भयंकर शब्‍द होने लगे। धरती डोलने लगी। इन सब उत्‍पातों ने प्रकट होकर समस्‍त योद्धाओं के मानसिक उत्‍साह को दबा दिया (29)
  • अशुभ आकाशवाणी सुनायी देने लगी, आकाश से उल्‍काएँ गिरने लगीं, भय की सूचना देने वाली सियारिनियाँ जोर-जोर से अमंगलजनक शब्‍द करने लगीं (30)
  • नरेश्‍वर! राजा दुर्योधन ने जब गंगानन्‍दन भीष्‍म को सेनापति के पद पर अभिषिक्‍त किया, उसी समय ये सैकड़ों भयानक उत्‍पात प्रकट हुए। (31)
  • इस प्रकार शत्रुसेना को पीड़ित करने वाले भीष्‍म को सेनापति बनाकर दुर्योधन ने श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों से स्‍वस्तिवाचन कराया और उन्‍हें गायों तथा सुवर्ण मुद्राओं की भूरि-भूरि दक्षिणाएँ दीं। उस समय ब्राह्मणों ने विजय सूचक आशीर्वादों द्वारा राजा का अभयुदय मनाया और वह सैनिकों से घिरकर भीष्‍मजी को आगे करके भाइयों के साथ हस्तिनापुर से बाहर निकला तथा विशाल तम्‍बू-शामियानों के साथ कुरुक्षेत्र को गया। (32-34)
  • जनमेजय! कर्ण के साथ कुरुक्षेत्र में जाकर दुर्योधन ने एक समतल प्रदेश में शिविर के लिये भूमि को नपवाया। (35)
  • ऊसर रहित मनोहर प्रदेश में जहाँ घास और ईंधन की बहुतायत थी, दुर्योधन की सेना का शिविर हस्तिनापुर की भाँति सुशोभित होने लगा। (36)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत सैन्‍यनिर्याणपर्व में भीष्‍मका सेनापतिविषयक एक सौछप्‍प्‍नवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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