षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 52-58 का हिन्दी अनुवाद
जो इस प्रकार के बर्ताव से सम्पन्न है, वह श्रेष्ठ मुनि कहलाता है। जो मनुष्य इन्द्रिय, उनके विषय, पंचमहाभूत, मन, बुद्धि, अहंकार, प्रकृति और पुुरुष- सबका विचार करके इन के तत्त्व का यथावत निश्चय कर लेता है, वह सम्पूर्ण बन्धनों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है। जो तत्त्ववेत्ता अन्त समय में इन तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करके एकान्त में बैठकर परमात्मा का ध्यान करता है, वह आकाश में विचरने वाले वायु की भाँति सब प्रकार की आसक्तियों से छूटकर पंचकोशों से रहित, निर्भय तथा निराश्रय होकर मुक्त एवं परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में गुरु शिष्य संवाद विषयक छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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