एकोनविंश (19) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 17-33 का हिन्दी अनुवाद
वह योगी अननी इच्छा के अनुसार विभिन्न प्रकार के शरीर धारण कर सकता है, बुढ़ापा और मृत्यु को भी भगा देता है, वह न कभी शोक करता है न हर्ष। अपनी इंद्रियों को वश में रखने वाला योगी पुरुष देवताओं का भी देवता हो सकता है। वह इस अनित्य शरीर का त्याग करके अविनाशी ब्रह्म को प्राप्त होता है। सम्पूर्ण प्राणियों का विनाश होने पर भी उसे भय नहीं होता। सबके क्लेश उठाने पर भी उसको किसी से क्लेश नहीं पहुँचता। शान्तचित्त एवं नि:स्पृह योगी आसक्ति और स्नेह से प्राप्त होने वाले भयंकर दु:ख शोक तथा भय से विचलित नहीं होता। उसे शस्त्र नहीं बींध सकते, मृत्यु उसके पास नहीं पहुँच पाती, संसार में उससे बढ़कर सुखी कहीं कोई नहीं दिखायी देता। वह मन को आत्मा में लीन करके उसी में स्थित हो जाता है तथा बुढ़ापा के दु:खों से छुटकारा पाकर सुख से सोता-अक्षय आनन्द का अनुभव करता है। वह इस मानव शरीर का त्याग करके इच्छानुसार दूसरे बहुत से शरीर धारण करता है। योगजनित ऐश्वर्य का उपभोग करने वाले योगी को योग से किसी तरह विरक्त नहीं होना चाहिये। अच्छी तरह योग का अभ्यास करके जब योगी अपने में ही आत्मा का साक्षात्कार करने लगात है, उस समय वह साक्षात इन्द्र के पद को पाने की इच्छा नहीें करता है। एकान्त में ध्यान करने वाले पुरुष को जिस प्रकार योग की प्राप्ति होती है, वह सुनो- जो उपदेश पहले श्रुति में देखा गया है, उसका चिन्तन करके जिस भाग में जीव का निवास माना गया है, उसी में मन को भी स्थापित करे। उसके बाहर कदापि न जाने दे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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