सप्तत्रिंशदधिकशततम (137) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय! गुप्तचरों के मुख से यह समाचार सुनकर कि वहाँ तुमुल युद्ध हो रहा है, कौरव वहाँ नहीं के बराबर हो गये हैं, पाञ्चालराज द्रुपद के बाणों से कर्ण के सम्पूर्ण अंग क्षत-विक्षत हो गये, वह भयभीत हो रथ से कूद कर भाग चला है तथा कौरव-सैनिक चीखने-चिल्लाते और कराहते हुए हम पाण्डवों की ओर भागते आ रहे हैं; पाण्डव लोग पीड़ित सैनिकों का रोमाञ्चकारी आर्तनाद कान में पड़ते ही आचार्य द्रोण को प्रणाम करके रथों पर जा बैठे और वहाँ से चल दिये। अर्जुन ने पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को यह कहकर रोक दिया कि ‘आप युद्ध न कीजिये’। उस समय अर्जुन ने माद्रीकुमार नकुल और सहदेव को अपने रथ के पहियों का रक्षक बनाया, भीमसेन सदा गदा हाथ में लेकर सेना के आगे-आगे चलते थे। तब शत्रुओं का सिंहनाद सुनकर भाइयों सहित निष्पाप अर्जुन रथ की घरघराहट से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए बड़े वेग से आगे बढ़े। पाञ्चालों की सेना उत्ताल तरंगों वाले विक्षुब्ध महासागर की भाँति गर्जना कर रही थी। महाबाहु भीमसेन दण्डपाणि यमराज की भाँति उस विशाल सेना में घुस गये, ठीक उसी तरह जैसे समुद्र में मगर प्रवेश करता है। गदाधारी भीम स्वयं हाथियों की सेना पर टूट पड़े। कुन्तीकुमार भीम युद्ध में कुशल तो ये ही, बाहुबल में भी उनकी समानता करने वाला कोई नहीं था। उन्होंने कालरूप धारण कर गदा की मार से उस गज सेना का संहार आरम्भ किया। भीमसेन की गदा से मस्तक फट जाने के कारण वे पर्वतों के समान विशालकाय गजराज लहू के झरने बहाते हुए वज्र के आघात से (पंख कटे हुए) पहाड़ों की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ते थे। अर्जुन के बड़े भाई पाण्डुनन्दन भीम ने हाथियों, घोड़ों एवं रथों को धराशायी कर दिया। पैदलों तथा रथियों का संहार कर डाला। जैसे ग्वाला वन में डंडे से पशुओं को हांकता है, उसी प्रकार भीमसेन रथियों और हाथियों को खदेड़ते हुए उनका पीछा करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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