महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 61 श्लोक 30-38

एकषष्टितम (61) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 30-38 का हिन्दी अनुवाद


जिस राजा के राज्य में स्नातक ब्राह्मण भूख से कष्ट पाता है, उसके राज्य की उन्नति रुक जाती है; साथ ही वह राज्य शत्रु राजाओं के हाथ में चला जाता है। जिसके राज्य से रोती-बिलखती स्त्रियों का बलपूर्वक अपहरण हो जाता हो और उनके पति-पुत्र रोते-पीटते रह जाते हों, वह राजा नहीं, मुर्दा है अर्थात वह जीवित रहते हुए मुर्दे के समान है।

जो प्रजा की रक्षा नहीं करता, केवल उसके धन को लूटता-खसोटता रहता है तथा जिसके पास कोई नेतृत्व करने वाला मंत्री नहीं है, वह राजा नहीं कलियुग है। समस्त प्रजा को चाहिये कि ऐसे निर्दयी राजा को बांधकर मार डाले। जो राजा प्रजा से यह कहकर कि ‘मैं तुम लोगों की रक्षा करूँगा’ और उनकी रक्षा नहीं करता, वह पागल और रोगी कुत्ते की तरह सबके द्वारा मार डालने योग्य है।

भरतनन्दन! राजा से अरक्षित होकर प्रजा जो कुछ भी पाप करती है, उस पाप का एक चौथाई भाग राजा को भी प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि सारा पाप राजा को ही लगता है। दूसरे लोगों का यह निश्‍चय है कि राजा आधे पाप का भागी होता है। परंतु मनु का उपदेश सुनकर हमारा मत यही है कि राजा को उस पाप का एक चतुर्थांश ही प्राप्त होता है।

भारत! राजा से भलीभाँति सुरक्षित होकर प्रजा जो भी शुभ कर्म करती है, उसके पुण्य का चौथाई भाग राजा प्राप्त कर लेता है। परंतप युधिष्ठिर! जैसे सब प्राणी मेघ के सहारे जीवन धारण करते हैं, जैसे पक्षी महान वृक्ष का आश्रय लेकर रहते हैं तथा जिस प्रकार राक्षस कुबेर के और देवता इन्द्र के आश्रित रहकर जीवन धारण करते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे जीते-जी सारी प्रजा तुम से ही अपनी जीविका चलाये तथा तुम्हारे सुहृद एवं भाई-बन्धु भी तुम पर अवलम्बित होकर जीवन निर्वाह करें।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में का एकसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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