महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 241-256

चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 241-256 का हिन्दी अनुवाद


उसके सींग ऐसे जान पड़ते थे, मानो वज्र के सारतत्‍व से बने हों। उनसे तपाये हुए सुवर्ण की-सी प्रभा फैल रही थी। उन सींगों के अग्रभाग अत्‍यंत तीखे, कोमल तथा लाल रंग के थे। ऐसा लगता था मानो उन सींगों के द्वारा वह इस पृथ्‍वी को विदीर्ण कर डालेगा। उसके शरीर को सब ओर से जाम्‍बूनद नामक सुवर्ण की लड़ियों से सजाया गया था। उसके मुख, खुर, नासिका (नथुने), कान और कटिप्रदेश- सभी बड़े सुन्‍दर थे। उसके अगल-बगल का भाग भी बड़ा मनोहर था। कंधे चौड़े और रूप सुन्‍दर था। वह देखने में बड़ा मनोहर जान पड़ता था। उसका ककुद् समूचे कंधे घेरकर ऊँचे उठा था। उसकी बड़ी शोभा हो रही थी। हिमालय पर्वत के शिखर अथवा श्वेत बादलों के विशाल खण्‍ड के समान प्रतीत होने वाले उस नन्दिकेश्‍वर पर देवाधिदेव भगवान महादेव भगवती उमा के साथ आरूढ़ हो पूर्णिमा के चन्‍द्रमा की भाँति शोभा पा रहे थे। उनके तेज से प्रकट हुई अग्नि की-सी प्रभा गर्जना करने वाले मेघों सहित सम्‍पूर्ण आकाश को व्‍याप्‍त करके सहस्रों सूर्यों के समान प्रकाशित हो रही थी।

वे महातेजस्‍वी महेश्‍वर ऐसे दिखायी देते थे, मानो कल्‍पान्‍त के समय सम्‍पूर्ण भूतों को दग्‍ध कर देने की इच्‍छा से उद्यत हुई प्रलयकालीन अग्नि प्रज्‍वलित हो उठी हो। वे अपने तेज से सब ओर व्‍याप्‍त हो रहे थे, अत: उनकी ओर देखना कठिन था। तब मैं उद्विग्‍नचित्त होकर फिर इस‍ चिन्‍ता में पड़ गया कि यह क्‍या है? इतने ही में एक मुहूर्त बीतते-बीतते वह तेज सम्‍पूर्ण दिशाओं में फैलकर देवाधिदेव महोदेव जी की माया से सब ओर शांत हो गया। तत्‍पश्‍चात् मैंने देखा, भगवान महेश्‍वर स्थिर भाव से खड़े हैं। उनके कण्‍ठ में नील चिह्न शोभा पा रहा था। वे महात्‍मा कहीं भी आसक्‍त नहीं थे। वे तेज की निधि जान पड़ते थे। उनके अठारह भुजाएं थीं। वे भगवान स्‍थाणु समस्‍त आभूषणों से विभूषित थे। महादेव जी ने श्‍वेत वस्‍त्र धारण कर रखा था। उनके श्रीअंगों में श्‍वेत चन्‍दन का अनुलेप लगा था। उनकी ध्‍वजा भी श्‍वेत वर्ण की ही थी। वे श्‍वेत रंग का यज्ञोपवीत धारण करने वाले और अजेय थे। वे अपने ही समान पराक्रमी दिव्‍य पार्षदों से घिरे हुए थे। उनके वे पार्षद सब ओर गाते, नाचते और बाजे बजाते थे।

भगवान शिव के मस्‍तक पर बाल चन्‍द्रमा का मुकुट सुशोभित था। उनकी अंग-कान्ति श्‍वेत वर्ण की थी। वे शरद ऋतु के पूर्ण चन्‍द्रमा के समान उदित हुए थे। उनके तीनों नेत्रों से ऐसा प्रकाश-पुंज छा रहा था, मानो तीन सूर्य उदित हुए हों। जो सम्‍पूर्ण विद्याओं के अधिपति, शरत्‍काल के चन्‍द्रमा की भाँति कान्तिमान तथा नेत्रों के लिये परमानन्‍ददायक सौभाग्‍य प्रदान करने वाले थे। इस प्रकार मैंने परमेश्‍वर महादेव जी के मनोहर रूप को देखा। भगवान के उज्‍जवल प्रभा वाले गौर विग्रह पर सुवर्णमय कमलों से गुंथी हुई रत्‍नभूषित माला बड़ी शोभा पा रही थी।

गोविन्‍द! मैंने अमित तेजस्‍वी महादेव जी के सम्‍पूर्ण तेजोमय आयुधों को मूर्तिमान होकर उनकी सेवा में उपस्थित देखा था। उन महात्‍मा रुद्र देव का इन्‍द्रधनुष के समान रंग वाला जो पिनाक नाम से विख्‍यात धनुष है, वह विशाल सर्प के रूप में प्रकट हुआ था।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः