महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-48

पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-48 का हिन्दी अनुवाद


देवि! अपना हित चाहने वाले मनुष्य को इसी प्रकार तिलमयी धेनु का दान करना चाहिये। अब पुनः एकाग्रचित्त होकर नाना प्रकार के दानों का फल सुनो। अन्नदान करने से मनुष्य को बल, आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है। जलदान करने वाला पुरुष सौभाग्य तथा रस का ज्ञान प्राप्त करता है। वस्त्रदान करने से मनुष्य शारीरिक शोभा और आभूषण लाभ करता है।

दीपदान करने वाले की बुद्धि निर्मल होती है तथा उसे द्युति एवं शोभा की प्राप्ति होती है। छत्रदान करने वाला पुरुष किसी भी जन्म में राजवंश से अलग नहीं होता। दासी और दासों का दान करने से मनुष्य कर्मों का अन्त कर देता है और मृत्यु के पश्चात उत्तम गुणों से युक्त भाँति-भाँति के दासों और दासियों को प्राप्त करता है। जो मनुष्य सुयोग्य ब्राह्मण को रथ आदि यानों और वाहनों का दान करता है, वह पैर सम्बन्धी रोगों और क्लेशों से मुक्त हो जाता है। उसकी सवारी में वायु के समान वेगशाली घोड़े मिलते हैं। वह विचित्र एवं रमणीय यान और वाहन पाता है।

पुल, कुआँ और पोखरा बनवाने वाला मानव दीर्घायु, सौभाग्य तथा मृत्यु के पश्चात शुभ गति प्राप्त कर लेता है। जो वृक्ष लगाने वाला तथा छाया, फूल और फल प्रदान करने वाला है, वह मृत्यु के पश्चात पुण्यलोक पाता है और सबके लिये मिलने के योग्य हो जाता है। जो मनुष्य इस जगत में नदियों पर जल ले जाने वाले पुरुषों की सुविधा के लिये पुल निर्माण कराता है, वह मृत्यु के पश्चात उसका पुण्यफल पाता है और सब प्रकार के संकटों से छुटकारा पा जाता है। जो मनुष्य सदा मार्ग का निर्माण करता है, वह संतानवान होता है तथा जो जल में उतरने के लिये सीढ़ी एवं पक्के घाट बनवाता है, वह शारीरिक दोष से मुक्त हो जाता है। जो सदा कृपापूर्वक रोगियों को औषध प्रदान करता है, वह रोगहीन और विशेषतः दीर्घायु होता है।

जो अनाथों, दीन-दु:खियों, अन्धों और पंगु मनुष्यों का पोषण करता है, वह मृत्यु के पश्चात उसका पुण्यफल पाता और संकट से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य वेदविद्यालय, सभाभवन, धर्मशाला तथा भिक्षुओं के लिये आश्रम बनाता है, वह मृत्यु के पश्चात् शुभ फल पाता है। जो मानव उत्तम भक्ष्य-भोज्य सम्बन्धी गुणों से युक्त तथा नाना प्रकार की आकृति वाली भाँति-भाँति की रमणीय गोशालाओं का सदैव निर्माण करता है, वह मृत्यु के पश्चात् उत्तम जन्म पाता और रोगमुक्त होता है। इस प्रकार भाँति-भाँति के द्रव्यों का दान करने वाला मनुष्य पुण्यफल का भागी होता है। बुद्धि, आयुष्य, आरोग्य, बल, भाग्य, आगम तथा रूप- इन सात भागों में प्रकट होकर मनुष्य का पुण्य कर्म अवश्य अपना फल देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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