पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-27 का हिन्दी अनुवाद
उमा ने पूछा- भगवन! कुछ मनुष्यों को पूर्वजन्म की बातों का स्मरण होता है। वे किसलिये पूर्व शरीर के वृत्तान्त को जानते हुए जन्म लेते हैं? श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! मैं तुम्हें तत्त्व की बात बता रहा हूँ, एकाग्रचित्त होकर सुनो। जो मनुष्य सहसा मृत्यु को प्राप्त होकर फिर कहीं सहसा जन्म ले लेते हैं, उनका पुराना अभ्यास या संस्कार कुछ काल तक बना रहता है। इसलिये वे लोक में पूर्वजन्म की बातों के ज्ञान से युक्त होकर जन्म लेते हैं और जातिस्मर (पूर्वजन्म का स्मरण करने वाले) कहलाते हैं। फिर ज्यों-ज्यों वे बढ़ने लगते हैं, त्यों-त्यों उनकी स्वप्न-जैसी वह पुरानी स्मृति नष्ट होने लगती है। ऐसी घटनाएँ मूर्ख मनुष्यों को परलोक की सत्ता पर विश्वास कराने में कारण बनती हैं। उमा ने पूछा- भगवन! कई मनुष्य मरने के बाद भी फिर उसी शरीर में लौटते देखे जाते हैं। इसका क्या कारण है? श्रीमहेश्वर ने कहा- शोभने! वह कारण मैं बताता हूँ, सुनो। प्राणी बहुत हैं और मृत्युकाल आने पर सभी का अपने प्राणों से वियोग हो जाता है। धार्मिक यमदूत कभी-कभी कई मनुष्यों के एक ही नाम होने के कारण मोहवश एक के बदले दूसरे को पकड़ ले जाते हैं, परंतु यमराज निर्विकार भाव से दूतों के द्वारा किये गये और नहीं किये गये, सभी कार्यों को जानते हैं। अतः संयमनीपुरी में जाने पर भूल से गये हुए मनुष्य को एकमात्र यमराज फिर छोड़ देते हैं, अतः वे अपने प्रारब्ध कर्म का शेष भाग भोगने के लिये पुनः लौट आते हैं। वे ही मनुष्य लौटते हैं, जिनका कर्म-भोग समाप्त नहीं हुआ होता है। उमा ने पूछा- भगवन! सोने मात्र से प्राणियों को स्वप्न का दर्शन होने लगता है। यह उनका स्वभाव है या और कोई बात है? यह मुझे बताने की कृपा करें। श्रीमहेश्वर ने कहा- प्रिये! सोये हुए प्राणियों के मन की जो चेष्टा है, उसी को स्वप्न कहते हैं। स्वप्न में विचरता हुआ मन भूत और भविष्य की घटनाओं को देखता है। अतः उन घटनाओं के देखने में प्राणियों के लिये स्वप्नदर्शन निमित्त बनता है। देवि! तुम्हें स्वप्न का विषय बताया गया, अब और क्या सुनना चाहती हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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