महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-27

पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-27 का हिन्दी अनुवाद


यह वेदज्ञान कर्तव्य और अकर्तव्य की शिक्षा देने वाला है, वाच्य और अवाच्य का बोध कराने वाला है। यदि संसार में सदाचार की शिक्षा देने वाली श्रुति न हो तो मनुष्य भी पशुओं के समान ही मनमानी चेष्टा करने लगें। वेदों के द्वारा ही यज्ञ आदि कर्मों का आरम्भ किया जाता है। यज्ञफल के संयोग से देवलोक की समृद्धि बढ़ती है। इससे देवता मनुष्यों पर प्रसन्न होते हैं। इस प्रकार पृथ्वी और स्वर्गलोक दोनों एक-दूसरे की उन्नति में सदा सहयोगी होते हैं। अतः तुम यह अच्छी तरह समझ लो कि वेद ही धर्म की प्रवृत्ति द्वारा सम्पूर्ण जगत् को धारण करने वाला है। जीवों के लिये इस त्रिलोकी में ज्ञान से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु नहीं है। सम्पूर्ण वेदों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करके द्विज कृतकृत्य हो जाता है और साधारण मनुष्यों की अपेक्षा ऊँची स्थिति में पहुँचकर देवता के समान प्रकाशित होने लगता है। जैसे हवा बादलों को उड़ाकर छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार वेदशास्त्रजनित ज्ञान काम, क्रोध, भय, दर्प और बौद्धिक अज्ञान को भी शीघ्र ही दूर कर देता है। ज्ञानवान पुरुष के द्वारा किया हुआ थोड़ा-सा धर्म भी महान बन जाता है और अज्ञानपूर्वक किया हुआ महान धर्म भी निष्फल हो जाता है।

उमा ने पूछा- भगवन! कुछ मनुष्यों को पूर्वजन्म की बातों का स्मरण होता है। वे किसलिये पूर्व शरीर के वृत्तान्त को जानते हुए जन्म लेते हैं?

श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! मैं तुम्हें तत्त्व की बात बता रहा हूँ, एकाग्रचित्त होकर सुनो। जो मनुष्य सहसा मृत्यु को प्राप्त होकर फिर कहीं सहसा जन्म ले लेते हैं, उनका पुराना अभ्यास या संस्कार कुछ काल तक बना रहता है। इसलिये वे लोक में पूर्वजन्म की बातों के ज्ञान से युक्त होकर जन्म लेते हैं और जातिस्मर (पूर्वजन्म का स्मरण करने वाले) कहलाते हैं। फिर ज्यों-ज्यों वे बढ़ने लगते हैं, त्यों-त्यों उनकी स्वप्न-जैसी वह पुरानी स्मृति नष्ट होने लगती है। ऐसी घटनाएँ मूर्ख मनुष्यों को परलोक की सत्ता पर विश्वास कराने में कारण बनती हैं।

उमा ने पूछा- भगवन! कई मनुष्य मरने के बाद भी फिर उसी शरीर में लौटते देखे जाते हैं। इसका क्या कारण है?

श्रीमहेश्वर ने कहा- शोभने! वह कारण मैं बताता हूँ, सुनो। प्राणी बहुत हैं और मृत्युकाल आने पर सभी का अपने प्राणों से वियोग हो जाता है। धार्मिक यमदूत कभी-कभी कई मनुष्यों के एक ही नाम होने के कारण मोहवश एक के बदले दूसरे को पकड़ ले जाते हैं, परंतु यमराज निर्विकार भाव से दूतों के द्वारा किये गये और नहीं किये गये, सभी कार्यों को जानते हैं। अतः संयमनीपुरी में जाने पर भूल से गये हुए मनुष्य को एकमात्र यमराज फिर छोड़ देते हैं, अतः वे अपने प्रारब्ध कर्म का शेष भाग भोगने के लिये पुनः लौट आते हैं। वे ही मनुष्य लौटते हैं, जिनका कर्म-भोग समाप्त नहीं हुआ होता है।

उमा ने पूछा- भगवन! सोने मात्र से प्राणियों को स्वप्न का दर्शन होने लगता है। यह उनका स्वभाव है या और कोई बात है? यह मुझे बताने की कृपा करें।

श्रीमहेश्वर ने कहा- प्रिये! सोये हुए प्राणियों के मन की जो चेष्टा है, उसी को स्वप्न कहते हैं। स्वप्न में विचरता हुआ मन भूत और भविष्य की घटनाओं को देखता है। अतः उन घटनाओं के देखने में प्राणियों के लिये स्वप्नदर्शन निमित्त बनता है।

देवि! तुम्हें स्वप्न का विषय बताया गया, अब और क्या सुनना चाहती हो?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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