त्रिनवत्यधिकशततम (193) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्त्रमोक्ष पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
भारत! आपके सभी सैनिक भूख-प्यास से व्याकुल एवं मलिन हो रहे थे, मानो सूर्य ने उन्हें अपनी प्रचण्ड किरणों से झुलसा दिया हो। वे अत्यंत उदास हो गये थे। राजन! जैसे सूर्य का पृथ्वी पर गिर पड़ना, समुद्र का सूख जाना, मेरु पर्वत का उल्टी दिशा में चला जाना और इन्द्र का पराजित हो जाना असम्भव है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य का मारा जाना भी असम्भव समझा जाता था, परंतु द्रोणाचार्य के उस असहनीय वध को सम्भव हुआ देख सारे कौरव थर्रा उठे और भय के मारे भागने लगे। सुवर्णमय रथ वाले आचार्य द्रोण के मारे जाने का समाचार सुनकर गान्धारराज शकुनि त्रस्त हो उठा और अत्यन्त डरे हुए अपने रथियों के साथ युद्ध-भूमि से भाग चला। सूतपुत्र कर्ण भी ध्वजा-पताकाओं से सुशोभित एवं बड़े वेग से भागी हुई अपनी विशाल सेना को साथ ले भय के मारे वहाँ से भाग खड़ा हुआ। मद्रराज शल्य भी रथ, हाथी और घोड़ों से भरी हुई अपनी सेना को आगे करे भये के मारे इधर-उधर देखते हुए भागने लगे। शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य बहुसंख्यक, ध्वाजा-पताकाओं से सुशोभित बहुत से सैनिकों द्वारा घिरे हुए थे। उनकी सेना के प्रमुख वीर मारे गये थे। वे भी हाय! बड़े कष्ट की बात है, बड़े कष्ट की बात है ऐसा कहते हुए युद्ध भूमि से खिसक गये। राजन! कृतवर्मा भी भोजवंशियों की अवशिष्ट सेना तथा कलिंग, अरट्ट और बाह्लिकों की विशालवाहिनी साथ ले अत्यन्त वेगशाली घोड़ों से जुते हुए रथ के द्वारा भाग निकला। नरेश्वर! द्रोणाचार्य को वहाँ मारा गया देख उलूक भी भय से पीड़ित हो थर्रा उठा और पैदल योद्धाओं के साथ जोर-जोर से भागने लगा। जिसके शरीर में शौर्य के चिह्न बन गये थे, वह दर्शनीय युवक दु:शासन भी भय से अत्यन्त उद्विग्न हो अपनी गज-सेना के साथ भाग खड़ा हुआ। द्रोणाचार्य धराशायी हो गये, यह देखकर वृषसेन भी दस हजार रथों और तीन हजार हाथियों की सेना साथ ले तुरंत वहाँ से चल दिया। महाराज! हाथी, घोड़े और रथों की सेना से युक्त तथा पैदल सैनिकों से घिरा हुआ महारथी दुर्योधन भी रणभूमि से भाग चला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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